मूल्यांकन | Mulyankan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
202
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)হে मूल्यांकन (१)
राष्ट्रीय काव्य सबके सम्बन्ध मे समान रूप से सत्य हू......
,०००००००-००-ईस विरोध को देखकर कुछ लोग भ्रम म॑ पड़
जाते हैं। बात यह है कि भारतेन्दु-साहित्य का निमोश उस
काल में हुआ जब कि विदेशी शक्ति के विरुद्ध, उस विद्राह
के बाद, जिसे अंग्रज ऐतिहासिकों ने सिपाही-विद्रोह मात्र
कहा है, देश मे सर्वत्र निराशा, उत्साहहीनता और हाहा-
कार मचा हुआ था। सिपाही विद्रोह का तो अंमजां न
अपनी आधुनिक शक्ति से दमन कर दिया था। उस दुरदन
में असहाय और परास्त जनता अंग्रजी राज्य का मुह
ताकने के सिवा और क्या कर सकती थी? भारतेन्दु की
राजभक्ति की रचनाओं में हम वास्तव में तत्कालीन विवशता-
पूर्ण स्थिति की ही दयर्नीय भावना पाते हैं |” --
( पर५ ८३-८४ । )
“इस सम्बन्ध में इस बात की भी चचो कर देना अप्रासं-
गिक नहीं होगा कि इस क्षेत्र में भारतेन्दु की कला बहुत
कुछ अंशों में निराशावादी है। “भारत दुदंशा” और
“तन्ील-देवी” में जो विषादान्त दृश्यों की उन्होंने योजना की
हे, वह उनकी इसी मनोबृत्ति का सूचक है। वास्तव में
सिपाही-विद्रोह के गहरे आघात और पतन के बाद देश में
जो एक निराशापूण हाहाकार व्याप्त हो गया था, भारतेन्दु
की वाणी में हम उसी का स्वर और आर्तेनाद सुनते हैं। इस
स्थिति में भारतेन्दु ने यदि आशा का संचार किया भी है तो
भारत के प्राचीन गोरवशाली इतिहास की ओर संकेत करके ही।
.०....ये भाव कवि के सच्चे हृदय के उद्गार ये! यदह सचाई
ओर सफाई भारतेन्दु की कला की सबसे बड़ी शक्ति है।
उन्होंने एक शब्द भी ऐसा नहीं कहा है जो उनके सच्चे हृदय
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