रसायन शाला | Rasayan Shala
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20.3 MB
कुल पष्ठ :
600
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हू है
आपके लेखों फे सब्चें प्रयोगों की शित्ति पर खड़े होने के कारण जगह २.
आपके प्रतिस्पर्थियों को ही दार माननी पड़ी है, और उन प्रतिस्पर्थियों
ने जब स्वयं प्रयोग करके देखा तब शास्री जी के कार्य का श्रे्ठत्व
उनको प्रत्यक्ष ही अजुभूत दो गया& । आपके कार्य को सहस्प-पूर्ण
समझ कर कतिपय चिद्धानो ने आपको 'नव्य नागाजुंन' 'रसायन-
भास्कर” 'रसायनशास्री' 'रसायनचिशारद' आादि उपाधियों भी दी हैं,
थे सब मेरी सम्मति में पूर्णतया यथाथे है। समस्त आएयुर्वेदीय
विद्वानों ने आजतक यदि इस दृष्टि से कार्य किया होता, ओर अपने
अजुभव संसार के सामने सत्यस्वरूप में रख प्रसिद्ध कर दिये होते
तो भारतवर्ष में स्वराज्य के न होते हुए भी आज चिकित्सा संसार
मे आयुर्वेद ही अत्युन्नत अवस्था मे दिखलाई देता । नवीन प्रयोगों
छारा ही किसी शाख्र की उन्नति होती है । मुझे विश्वास है कि शास्त्री
जीने संसार के लिये जो कुछ कर दिखाया है उसके लिये दम
लोग आपके छरुतश्त रददकर यदि आपका अधूरा काये पूरा करने को
+ रसायनसार तृतीयाइत्ति पृष्ठ १४२ पर भारत के मान्य वैद्यराज श्री जीवाराम
कालीदास, गौंडल से जो स्वर्गीय शात्रीजी का शाल्नार्थ छपा हुआ है, उसके विषय
सें प्न्थ ( तृतीयाइत्ति ) मुद्रित दोने की खबर सुन कर मान्यवर वैद्यराज ने हमें
एक पत्र द्वारा सूचित करने की कृपा की दे कि उनका शास्राथ के समय जो स्व्॒णे-
ग्रास के विषय में मत था, उसे रसायनसार कथित अनुभव करने के पथ्थात् उन्दोंने
बदल दिया दे और वे अब स्वरगाय शास्रीजी के मत से पूर्णतया सदमत हैं ।
हमें सेद है कि उक्त पत्र अन्य के मुद्रित दो खुकने पर हमें मिला । इस कारण
दम उसे यथास्थान प्रकाशित न कर सके, अत. दम उक्त पत्र का सारांश यद्दीं
प्रकाशित कर देते हैं । प्रकाशक--
रेन्झपेंर मुझे मालूम हुआ है कि रसायनसार की छृतीयाधत्ति छप रही
है। इसके विषय में सूचित करता हूँ कि सच १९११ में मेरे जो सिद्धान्त
थे वे अब नहीं हैं। उस समय मैंने मान रखा था और सिद्ध भी करने की
कोशिदा की थी कि पारद सोने का भक्षण नहीं कर सकता । परन्ठु इधर लगभग
१६ चपी से में शा्रीजी के सिद्धान्तों से दी सदमत दो गया हूँ... ... ८८८... ,««
सससम्ककररिश यदि श्रन्थ छप घुका दो तो अन्त में मेरा यद्द वक्तव्य अकाशित कर दें,
यदि यद्द भी सम्भव न दो तो में अपने पत्र में अन्थ की समालोचना करते समय
स्वर्गीय शास्रीजी से सदमत दोने की चात अराशित कर दूँगा ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...