जगद्गुरु भारतवर्ष | Jagadguru Bharatvarsh
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
40 MB
कुल पष्ठ :
304
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सुखसम्पत्तिराय भंडारी - Sukhasampattiray Bhandari
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ঙ.
.._. केबल बोलिंयोंकी-संख्यां में यहः देश श्रषठः स्थने ` स्वतीःहो `
-सीही चीं, प्ररःभाषा कौ पांच प्रधान - शाखाओं की (আহি:
द्रविड़, पांचोंल; मुराडा, मोनखमेर और ठिंबेटा-चिनी ) मंत्थूमिं-
'भी यही है। इनके अतिरिक्त यदि इस राष्ट् के साथ अरब देश के _
अदन इत्यादि ओर मिलाए जांय, तो भाषा की- दो प्रधान शाखाएं
और मिलेंगी, जिन्हें कि वहां की शाम-और हाम जातिये बोलती
हैं। ऐतिहासिक कालक्रम के अनुसार दृष्टिपात करने से हिन्दुस्थान .
की सभी बात प्राय: प्राचीन - मादछम होती हू | इसमे काईं सन्देह
. नहीं कि. यदि कुछ विशेष कारण-जिनका विवेचन करना यहाँ.
अनुपयुक्त होगा-न आपडते तो भारतवषे मी उन्नतिशील राष्टों
की सभी बतो में अपना श्रेष्ठ स्थान रखता | पर विरुद्ध-घटना:
. के वश में पडकर ही उसने अपनी सारी महिमा की यहातिक कि
स्वतंत्रता को भी-अतीत के गहरे गभे मे विसर्जित करदी। विख्यात्
ठेखक मार्वटेन : भारत कौ यत्रा करते हए अपनी एक `. पुस्तक
में लिखते हैं कि, “ इस संसार मे हिन्दुस्थान ने सभी भादि
. विषयों में सबसे पहले तरक्की की । उसकी सम्यंता धन,
पाण्डित्य, ज्ञान आदि सबसे पहले प्रकट हुए । यहांपर खाते, बन `
और उपजाऊ भमि बहुतायत से थी | ऐसी दशा मे इसकी परा-
धीन होना सम्भव नहीं था। पर भाषा, और जाति भेद के कारण
इसमें ऐक्यता स्थिर न रही । जहां अस्सी আালি জীহ কী-্থ হাজা
आपंस में लडते रहते हैं वहां किसंप्रकार जीवन के कांय्ये व्यवहार _
म एकमत होसक्ता है । ओर जहां एकमत नदीं, वहां ' पराधीनता
का पदारपण होना आवश्यक -है!।
_- आप्यवैधक, और-शब्यंशाज्ञ की प्रांचीनता के विषय:
पूर्वीयं ओर पाल्चिमात्य सभी विज्ञानी सहमत है । इस-भारतकर्ष “নী,
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