कुटिया का राजपुरुष | Kutia Ka Raj Purush

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Kutia Ka Raj Purush by विश्व प्रकाश - Vishv Prakash

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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तेरना मैं सीखने को कूद गगा में गया थ. श्रन्ततः तेराक मैं. तो एकदम बिल्कुल नया था। अस्तु, यह थी एक घटना जो कि शिशुता में घटी थी, किन्तु, सारी आयु उसकी इस तरह से ही कटी थी । कंटकों में ही पला था फूल-सा वह मुसकुराया. सकटों के सामने भी शीश कब उसने झुकाया। डेढ वषं भी बीत न पाया वज्र भयानक टूटा, स्वगं सिधारे पिता, भाग्य ने शिशु को सहसा लूटा । माँ विधवा हो गई काल को उस पर दया न आई, कदन की वह डली प्रग्नि में दूनी गई तपाई। तपकर और खरा होता है, उज्ज्वल होता सोना, रामदुलारी को भी आखिर था ऐसा ही होना। सहनशक्ति की वह प्रतिमा थी, साहस, धीरज वाली, निजसतति की जीवन-नौका को खेकर पार निकाली । तपस्विनी नारी ने रखकर प्रभु पर भ्रटल भरोसा, बड़ी-बड़ी दो सुता, एक सुत; सबको पाला-पोसा । दो बहनों के बीच एक था नन्हा छोटा भाई, प्यार, मोह, अतिश्रद्धा, ममता उसने सबसे पाई। घर-बाहर का चंद्र कितु था वह श्राँखों का तारा, नन्‍हा था इसलिए सभी ने नन्हे नाम पुकारा । बड़ा हुआ तो लाल बहादुर' यहु नन्हा कहलाया, जिसने एेसा वीर बहादुर जना धन्य वह्‌ जाया । माता ने बचपन में उसको ऐसा पाठ पढ़ाया, झुका न बोला भूठ, लोभ में फंसा नहीं ललचाया। १८ कृटिया का रापुजरुष




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