एक सूत्र | Ek Sutra

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Ek Sutra by गोविन्दवल्लभ पन्त - Govindvallabh Pant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६ एक सूत्र लेने से बड़ी चिढ़ थी। अक्षरों को देखने-मात्र से डर पेदा होता था, सीखे ही नहीं | जैसा है, वेसा ही देखना चाहता था, विना प्रतीक कीं सहायता के ही ।” “ठीक है । प्रतीक सवको एक ही ध्येय पर पहुँचा भी तो नहीं सकता 1 प्रती ने कहा | (“त्तर न सीखने से मेरे मस्तिष्क के विकास मे बड़ी सहायता मिली । पढ़ा नहीं, मेंने सुना। में अधिक विचारशील हो गया, ओर मेरी धारणा प्रबल हो गई |) “मनुष्यों से ऊपरी स्तर में तो आप हैं ही। में आपको ओर भी ऊपर सममता हँ--अवतार ! अवतार !” कवि जैसे कविता के आवेश में बोल उठा हो | “आज मुझे दर्शन मिल गए उस रहस्य के भरे हुए महात्मा के “क्या अचानक ९ आप मृगया के लिये गए थे १” “बह एक बहाना था। फ्रेज़ी ! मेंनें उसे सिंह का सिरहाना बनाकर सोते हुए देखा । तुम मेरे अनुभवों का विश्वास करते हो, इससे केवत तुम्हीं पर यह प्रकट करूँगा ।? “संसार में कुछ भी असंभव नहीं! जो केवल गणित से ही सारी सृष्टि के व्यापार को तोलता है, मूलता है ।” “यह सच छिपकर ही देखा था मेंने । मेरी आहट पाकर उस महात्मा ने सारा कोठुक छिपा दिया । उलदा




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