प्रतिदान | Pratidaan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
26 MB
कुल पष्ठ :
287
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द्रोश चल दिया | काक फिर सो गया । द्रोण मन में विचार करने
लगा । दूर अ्रत्र कुन्ताप का पाठ हो रहा था । ब्राक्षण च्छंसि द्वारा गाये
दए यह मंत्र बद्ध ब्राह्मण स्वीकार हौ नदीं करते ये | जिस समय द्रौण
आचा श्रग्निवेश्य की कुटीर के निकट पहुँचा उसने देखा, पूजनी--
आचार्य पत्नी की पालतू चिड़िया अपनी बंधी टाँग लिये छुप्पर पर
इधर-उधर फुदर्क रही थी और अभीषाह नामक देश के कुछ तरुण एक
ओर न्यग्रोघवृत्ष की छाया में बैठे ये | वे नये विद्यार्थी थे। आचार्य
अग्नि-वेश्य का नाम प्रसिद्ध था | उनके यहाँ कांन्रोज से लेकर मिथिला
तक के तरुण आते थे | यक्कछोम के शुद्ध राजा का पुत्र आया था, जो
पिता की पराजय का समाचार सुनकर लोट गया था। उसका वहाँ
पिता के साथ ही बध कर दिया गया और फिर क्षत्रियों ने वहाँ शासन
प्रारंभ कर दिया था।
मेध्या नामक दासी नेद्रोण कोदेख कर प्रणाम किया | वह
किंचित गौरव थी । उसे श्रपने रूप का ज्ञान था। उसने बकिम दृष्टि
से द्रोंण को देखा और कहा : देव | कहाँ चले गये थे !
'कद्दी तो नहीं, ? द्रोश ने कहा |
वह मुस्कराई |
अ्रचाये को सूचना दे |!
जाती तो हूं ।! वह इठला कर भीतर चली गई ।
तरुण द्रोण के नासापुट कुछ फूल गये | भ्ुजदरड फड़के जैसे स्त्री
का फेंका हुआ अख्तर अंकम्यस्त पुरुष ने धर्य से रोका और फिर पलट
कर फेंक दिया |
टिट्टिम जब लौट कर आया, उसने दूर से देखा द्रोण आचार्य के
द्वारपर खड़े थे ओर उसके भोजन को खाकर कुत्ता गेल होकर सो
रहा था। उसने क्रोध से उसमें पत्थर मारा। कुत्ता केँ कै करके काक के
पास पुश्राल पर जा सोया |
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