स्वदेश - संगीत | Swadesh Sangiit
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
143
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मारलवर्य
मस्तक ऊँचा हुआ मही का, धन्य दिमालय का उत्कषे |
हरि का क्रीड़ा-कषेत्र माराः भूमि-माम्य-सा मारतवये ||
हरा-भरा यह देश बना कर विधि ने रवि का मुकुट दिया,
पाकर प्रथम प्रकाश जगत ने इसका ही अनुसरण किया |
प्रभु ने स्वयं 'पुर्य-मू! कह कर यहाँ पूर्ण अवतार लिया,
देवों न रज खिर पर ख्खी, दैत्यों का हिल गया हिया ।
लेखा श्र इस रिष्ट ने दुष्टों >े देखा दुद्धषे |
हरि का क्रीड़ा-क्षेत्र हमारा मूमि-साग्य-सा सारतवर्ष।|
अद्धित-सी आदश मूर्ति है सरयू के तट में अब सी,
मज रही है मोहनमुरली जज -कंशीवट मे अब मी |
लिखा बुद्ध ननिवोण-मन्त्र जयपाणि-केतुपट में अब भी,
महावीर की दया प्रकट है माता के घट में अब भी ।
मिली स्वणे-लड्ढा मिट्टी में, यदि हमको आ गया अम |
रि का क्रीडा-तेत्र हमारा भूमि-माम्य-सा भारतवये ||
याय, अग्रत सन्तान, सत्य का रखते हे हम पत्त यहा
दोनों लोक बनाने वाले कहलाते हैं दत्त यहाँ ।
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