परमानन्द - सागर | Parmanand Saagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ ६ ) '*'बसत्साखुर, बकासु रयोवंध: ११ अधासुरवधघ: ন্‌ भ # गोचारणं घेनुकासुरवध:' ** १५ का्ियद मनम्‌ ` १६ देरुगीतम्‌ भगवतो मधघुरौदेशुनाद- माकस्यं मोपीसिस्तदुगुणगानम्‌ २१ चौरहरणएलीला प्र्‌ अन्नयांचा मिषेए यज्ञपत्नीष्वनुप्रह:२३ इन्द्रमस भंग: २४ कोपाद्‌ मुसललधाराववं वपतीन्द्र ब्रजोकसां रक्षणार्थे गोवद्धंन धारणम्‌ २५ वेणुनादं च स्वाऽऽगतानां गोपीनां श्रीकृष्णेन सह्‌ संवादः, रासारस्मः, ताखां सानापनोदाय भगवतो- ऽम्तधूैनं च ६ गोपीद्वारा मगवतोउनुसन्धान॑ तदाचरितानुकरण्ण यमुनापुलिते तदागमग्रती क्षणं च २० ज नमान मिषांतर दर्शन गो--दोहन--प्रसंग बन-क्रीडा, छाक के पद गोचारण ससय दान--ग्रसंग ভিলনব্লী की असंग बन ते ब्रज कौ पाड धारिदो वेरु. गान गोपिकाज्‌ के आसक्ति के वचन ˆ * 'स्वरूप-व्शुन जुगल-रस-वर्शन ब्रताचरणा- प्रसंग धुनरास ससय के पद अन्तथीन समय इस प्रति में श्रीमद्सागवत के विषयानुक्रम से इस स्थल्न पर थोडा विसम्बाद्‌ अता है, भागवतकार के अलुसार दीपसालिका, गोवद्ध नोद्धरण प्रसंग--रास-क्रीडा दि प्रसंग के पूव आना चाहिये,किन्ठु इस संप्रहकार ने उता विपर्यय कर दिया है। कुछ अन्य प्रतियों में भी यही व्यतिक्रम है। सम्सवतः वर्षेत्सिव, नित्यक्रम की कीतनात्मकऋ शैली इनके दृष्टिबिन्दु में रही हो । परन्तु हमारे सम्पादन में प्रयुक्त : क : हिं० बं० ४५, १ तथा : ख: हिं० बं० ४७, ४ श्रतियों में, जो कि प्राचीनतम होने क साथ ही शुद्ध; अथच हमारी सान्‍्यता में प्रासास्य रह है, श्रीमद्‌भागवत के विषयानुक्रम का पूरी तरह से अनुगसन किया गया है, उत्तम रास के पूव ही अन्नकूट है ।




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