साहित्य - प्रभाकर | Sahitya Prabhakar

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Sahitya Prabhakar by महालचंद वयेद - Mahalachand Vayed

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ख ) काव्य-ममे्ञ सम्पादक सरस, खुन्दर ओर श्रेष्ठ उक्तियां चुन-चुन- कर संग्रह करते है । जसे चुने इए रलो के बने हुए अलड्भार की सुन्दरता और चमक-दमक पर लोग छुब्ध होते हैं, चेसे ही चुनी हुई उत्करष्ट उक्तियों पर काव्य-रसिक पाठक मुग्ध होते हैं| दूसरी बात यह है कि काव्य-संग्रहों से केवल पेसों की ही बचत नहीं होती, अपितु समय भी बचता है। सूक्ति-संग्रहों की रुचिर रचनाओं जेखी करा-पूणं छृतियां खोजने के लिये सैकड़ों काव्य- ग्रन्थ ओर रम्बा समय अपेक्षित होता है । उपयुक्त कारणों से सूक्ति-संग्रहों की ओर छोगों का अधिक झुकाव होना स्वाभाविक है । 5 ह . हिन्दी-साहित्य की काव्य-निधि किसी साहित्य से न्यून नहीं है। भाषा-काव्य के प्रकाशित और अप्रकाशित ग्रन्थों की संख्या भी असंख्य है। प्राचीन और अर्वाचीन खुकवियों की सूक्तियों के हिन्दी-साहित्य का अनेक संग्रह-ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके और हो काव्य-कोश . रहे हैं। किन्तु काव्य-रखसिक पाठकों की मनस्तुष्टि के लिये अभी तक नवीन संग्रह की आवश्यकता बनी हुई है। उनकी मनस्तुष्टि हो भी कैसे ? जबकि महाकवि सू््यमह् मिश्रण, बनारसी, भूधरदास, किशन, गणेशपुरी, अर्जुन दास केडिया आदि अनेक ऐसे प्रतिष्ठित प्रोढ़ कवि-को विदों की रचनाओं का संग्रह अभीतक संग्रहों को खुशोभित नहीं कर सका है, जिनकी काव्य-रचना उच्च कोटि की और काव्य- समालोचकों द्वारा मुक्तकण्ठ से प्रशंसित है ।




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