समयसार कलश टिका | Samayasaar Kalash Teeka
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
356
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अ
. शककल. ` .
समयसार कलझ टीका ।
| मेगराचरण।
महेतिदानाये युर, सषु प्रम गुणवान ।. वहु मन वच काये, होय दिद হান ||
्रऋषमदेवःजत्नि वीरो, चौवीों निनराय | धरे प्रवेक ती्थगुरु, बंदहुँ उरःउमगाय-॥२॥ः
गौतम. यणषको नमू, नमि.सुषमं सुनिराय | जदुषामि नयक नमह परम सुखदाय ২1;
कुदकुद आचार्यो, जिन निभ तत्व रसाय) दर्यो निन वनने; नहु सगुण उ ध्याय ॥४॥
मुणाचंद्र आचायको, सुमरूं. वारम्वार | अध्यात्म स्वता फर, शान पूं भहारः॥ ९: ॥}
उत्थानिका-श्री कंदर्कुद महारानने श्री -पमयपरार प्रात यदी अपव. रचना द्री,
उप्तकां भाव लेकर श्र भपृतयेद भवा्ने पैस्ठत्त करश्च रवे व उनकी भाषाटीका-परम
विद्वान राज॑मलमीने रची धी, उप्तीा पोषय ष विप्तार पर हेतु; किया. नाता-है+-..
५ नमः समयस्ताराय ` स्रा्ुभूया चकारते । ` ..
-› ` .. चित्छभावाय भावाय सवमावान्तरच्छिदे.॥ ২1)...
„: .संहान्वये सहित .अध- मावाय नमः भाव शब्दे कहिने पदाथे, पदार्थ संज्ञा ठै सत्वैः
छरूप फहु | तिहिते यो अर्थ ठहरायो: नो कोई: शासतो वत्तुरूप; हिंहें ग्हाकोः नमश्ोरे।!
पों.बल्तुरूप किप्तो'छे चित्तंवभावांय चित् कह्िने ज्ञान चेतना प्तोई के स्ेभाव सर्वे निहिको।
“ तिहिको ग्हौकी नमरकार | इंद्धि विशेषण कहता दोह समाघान हुई छे| एकु:तो भाँवे कहता पदाथः
तेःपदाय ढे चेतन छे, केई भचेतन छे, तिद मादि. चेतन पदायै नमर करिविं योग्यः
'छे इस्तो अर्ग उप छे !:दूनो संमाघान इसे नो यद्यपि वस्तुको' गुण वस्तु माह! ग्ित छे;
वरंतु गुण एक ही सतत छे। तथापि भेद. ठपनाह कहिवा- योग्य छे| विशेषणः कहिवा परे
बत्तुक्ो ज्ञान उपने नहीं | पुन) किंविशिष्ठाय मावाय और किसो छे भाव | समंयंत्ताराय<
बद्यपि समय शब्दका बहुत मँथे छे ।-तथापि'एने जेवर समय शब्दे सामन्यपनेः नीवादि
: पकड़े पदाव:जानिवा.। तिहि.माहे! नो कोई सार छे पर कहता ` उपदेयै ठै; जीव वस्तु
तिहिकी ग्हाकी नमस्कार 4 हृह्दि विशेषणको यो. मावोे-स्तारपनो. नानी चेतने पदान
- की सत्ता या मौजूदगी दा पारि जवि 1. र-दव्य भौ९ उक य॒ एष ही. लाने
एते रै, लग नह पाए जपते 1. ३-षिना 1.भयदपर.। भ-महुम कने कथक । ` ' `
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