समयसार कलश टिका | Samayasaar Kalash Teeka

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अ . शककल. ` . समयसार कलझ टीका । | मेगराचरण। महेतिदानाये युर, सषु प्रम गुणवान ।. वहु मन वच काये, होय दिद হান || ्रऋषमदेवःजत्नि वीरो, चौवीों निनराय | धरे प्रवेक ती्थगुरु, बंदहुँ उरःउमगाय-॥२॥ः गौतम. यणषको नमू, नमि.सुषमं सुनिराय | जदुषामि नयक नमह परम सुखदाय ২1; कुदकुद आचार्यो, जिन निभ तत्व रसाय) दर्यो निन वनने; नहु सगुण उ ध्याय ॥४॥ मुणाचंद्र आचायको, सुमरूं. वारम्वार | अध्यात्म स्वता फर, शान पूं भहारः॥ ९: ॥} उत्थानिका-श्री कंदर्कुद महारानने श्री -पमयपरार प्रात यदी अपव. रचना द्री, उप्तकां भाव लेकर श्र भपृतयेद भवा्ने पैस्ठत्त करश्च रवे व उनकी भाषाटीका-परम विद्वान राज॑मलमीने रची धी, उप्तीा पोषय ष विप्तार पर हेतु; किया. नाता-है+-.. ५ नमः समयस्ताराय ` स्रा्ुभूया चकारते । ` .. -› ` .. चित्छभावाय भावाय सवमावान्तरच्छिदे.॥ ২1)... „: .संहान्वये सहित .अध- मावाय नमः भाव शब्दे कहिने पदाथे, पदार्थ संज्ञा ठै सत्वैः छरूप फहु | तिहिते यो अर्थ ठहरायो: नो कोई: शासतो वत्तुरूप; हिंहें ग्हाकोः नमश्ोरे।! पों.बल्तुरूप किप्तो'छे चित्तंवभावांय चित्‌ कह्िने ज्ञान चेतना प्तोई के स्ेभाव सर्वे निहिको। “ तिहिको ग्हौकी नमरकार | इंद्धि विशेषण कहता दोह समाघान हुई छे| एकु:तो भाँवे कहता पदाथः तेःपदाय ढे चेतन छे, केई भचेतन छे, तिद मादि. चेतन पदायै नमर करिविं योग्यः 'छे इस्तो अर्ग उप छे !:दूनो संमाघान इसे नो यद्यपि वस्तुको' गुण वस्तु माह! ग्ित छे; वरंतु गुण एक ही सतत छे। तथापि भेद. ठपनाह कहिवा- योग्य छे| विशेषणः कहिवा परे बत्तुक्ो ज्ञान उपने नहीं | पुन) किंविशिष्ठाय मावाय और किसो छे भाव | समंयंत्ताराय< बद्यपि समय शब्दका बहुत मँथे छे ।-तथापि'एने जेवर समय शब्दे सामन्यपनेः नीवादि : पकड़े पदाव:जानिवा.। तिहि.माहे! नो कोई सार छे पर कहता ` उपदेयै ठै; जीव वस्तु तिहिकी ग्हाकी नमस्कार 4 हृह्दि विशेषणको यो. मावोे-स्तारपनो. नानी चेतने पदान - की सत्ता या मौजूदगी दा पारि जवि 1. र-दव्य भौ९ उक य॒ एष ही. लाने एते रै, लग नह पाए जपते 1. ३-षिना 1.भयदपर.। भ-महुम कने कथक । ` ' `




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