भावना - शतक | Bhawana Shatak

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Bhawana Shatak by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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+ । भावनां-दानक ल्मी, तेग स्वामी सद्व कैसी तेरी सेवा करता रदता है ! चारै जैसी सर्दी दो, कैसा दी सख्त ताप हो, फिर भी गर्मी-सर्दी की परवाह न कर वद गवि-गाँव भठऊता फिरता है। ने पेटी-पिटारे में, तिजोरी में मुरक्षित रुपता है, बढ स्वयं मते द्वी कही इधर-उधर पट्ा रदे । चोर ओर 27तों से बचाने के लिए वट नींद को हराम कर देता | श्राच- श्यकता होने पर नरें लिए बद अपने प्रार्णों का भो बलिदान कर देता £ । तेरा स्थमी, तेरे लिए इतनी अधिक मुसीय्ते केलता है, तो मी हे चपले लक्ष्मी ! तू स्थिर नही रहती ओर अपने वनी के काम नहीं आती | दस निर्दयता का कोड ठिक्राना है ? क्या उपकार का बदला तू अ्पक्रार में चुफाती दे ?॥ ४ ॥ विधेचन--बहदी पदार्थ उपादेय गिना जा सऊता दै, जिसके ग्रादि में कुछ তু পাস हो, या जो सुसन्यूवंक प्राम ऊिया जा सकता हो । कदाचित्‌ ऊिसी पदार्थ को प्रात्त करने में सुख्य न मिले , किन्तु कप्ट- पूर्वक उसा उपाजन शिया याय; मगर प्रात होने के पश्चात्‌ उससे थोड्ा-बद्त ভুল मिल सकता हो, तो भी वद पदार्थं वान्य नीय माना जा सकता है। बीच में भी कदाचित्‌ सुख न मिलता दो, तो श्रन्त में सुस्त की अमिलाप्रा से भी बीच का इम्ख सहन किया नो सकता है और उसे प्रात करने का प्रयत उचित कृष्टा जा सकता ६; भिन्न जिसमे पहले भी दुःख दो, बीच में भी हु-स दो, श्रीर अन्त में भी ढः्स हो, ऐसे पदार्थ को प्राप्त करने में जो मनुध्य अपना समस्त जीवन गँवा देते हैं, वे कितनी भारी भूल करते ०५१ >) त बिन




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