दंडी दम्भ दर्पण | Dandi Dambh Darpan
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
180
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)€ ६ )
' प्रत्यक्ष बातों-है कि जब वह एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र को
जाते हैं तव उनके आगे या साथ में भोजनादि की
सामिग्रीओं से भरी हुईं शक्रदि कार्ये चलती है और जहां
कही भिक्ताक्ष- उन को नहि मिलता ई तद्य उनके अध
श्रेद्धालु-मृहस्थ उन्हें सरस भोजन वना कर दे देते हैं
आर बह बड़े मजे से माल उड़ांते हैं; देखो तुम्हारे ही दंदी
लाभ विजय जी “ स्तवनावत्ती ” ग्रंथ की पृष्ठ ? ७२पंकित
७ मीस लिखते हैं कि -
संवेगी विहार करते हैं जद (जब) शहरुत
-आदमी- साथ देते हैं वोक वगरे (ले चलने ) हूँ
फेर सजल पर घर न होने से दाल वारी
गरम पानी करके .संजे में खाते पिलाते
इच्छांनुकूल ठिकाने पहचाते हैं अ ( यह ) पाप
कहां छटेगा 5 -
पुन! देखो-उपस्युक्त ग्रे की ही पृष्ठ १७३ पंक्ति दूसरी से
पेम बिजय जी आगरे आये गये आदमी
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