स्वतंत्रता की ओर | Swatantrata Ki Or

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Swatantrata Ki  Or by हरिभाऊ उपाध्याय - Haribhau Upadhyaya

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हरिभाऊ उपाध्याय का जन्म मध्य प्रदेश के उज्जैन के भवरासा में सन १८९२ ई० में हुआ।

विश्वविद्यालयीन शिक्षा अन्यतम न होते हुए भी साहित्यसर्जना की प्रतिभा जन्मजात थी और इनके सार्वजनिक जीवन का आरंभ "औदुंबर" मासिक पत्र के प्रकाशन के माध्यम से साहित्यसेवा द्वारा ही हुआ। सन्‌ १९११ में पढ़ाई के साथ इन्होंने इस पत्र का संपादन भी किया। सन्‌ १९१५ में वे पंडित महावीरप्रसाद द्विवेदी के संपर्क में आए और "सरस्वती' में काम किया। इसके बाद श्री गणेशशंकर विद्यार्थी के "प्रताप", "हिंदी नवजीवन", "प्रभा", आदि के संपादन में योगदान किया। सन्‌ १९२२ में स्वयं "मालव मयूर" नामक पत्र प्रकाशित करने की योजना बनाई किंतु पत्र अध

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ঙ जोवन का उद्देश प्राकृतिक शक्तियों पर भी अपना अधिकार कर लिया है | इसीलिए यह जरूरी है कि मनुष्य अपने बल ओर पौरुष के वास्तविक स्वरूप को समझे, अपनी पराधीनता से स्वाधीन बनने की राह खोजे और जाने । इन सब वातो को जान लेना जीवन का मर्म समझ लेना है । उनके अनुसार जीवन को वनाना, जीवन की सफलता है । सक्षेप मे जन्म से लेकर मृत्यु-पर्यन्त जीव के पुरुपार्थ को जीवन कहते हैं । अव हमे यह देखना है कि यह पुरुषार्थ क्या वस्तु है---अथवा यो कहे कि जीवन की सफलता या साधना किसे कहते है । (२. जीवन का उद्देश जी कहा से जन्मता है और कहा जाता है ? रास्ते म वह क्या देखता है, क्या पाता है, क्या छोडता है, क्या करता ई-- इन सबको जानना जीवन के रहस्य को समझना है । किन्तु इनकी बहुत गहराई मे पेठना त्क-झास्त्र ओर दर्णन-भास्त्र के सूक्ष्म विवेचन मे प्रवेश करना है । उससे भरसक वचते हुए फिलहाल हमारे लिए इतना ही जान लेना काफी है कि विचारको ओौर अनुभवियो ने इस सम्बन्धं मे क्या कहा है ओर वया बताया रै । उनका कहना ₹ कि इस ससार मे अनगिनत, भिन्न-भिन्न, परस्पर-विरोधी और विचित्र चीजे है । किन्तु उन मवके अन्दर हम एक ऐसी चीज को पाते हैँ जो सवमे सर्वदा समायी रहती है । उसका नाम उन्होने आत्मा रक्ला दै । यह आत्मा इस भिन्नता ओर विरोध के अन्दर एकता रखता है | इस दिखती हुई अनेकता मे वास्तविक एकता का अनुभव आत्मा के ही कारण होता है । साप इतना जहरीला




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