छत्रपति महाराज शिवाजी का जीवन चरित्र | Maharaj Chhatrapati Shivaji Ka Jivan Charitra
श्रेणी : इतिहास / History, साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
1.74 MB
कुल पष्ठ :
46
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हूं हुए
रायरे नगारे सुने बैर वारे नगरत;
सैनवारे नदन निवारे चाहियतु है ॥
शिवाजी की उद्दण्ड वीरता और वैभव को बढ़ते देख कर वीजा-
पूर के बादशाह की क्रोघाधि घवक उठी । उसने अपना एक दूत
शिवाजी के निकट यह कला के. भेजा कि अभी तक अच्छा है यदि
तम हमारी वडेयंता स्वीकार करलों । दूत ने आकर दिवाजनी से अ
पने प्रभ की आज्ञा कह सुनाई 1 दूत के मुह से बादशाह के अभि-
मान पूर्ण वाक्यें को सुनकर शिवाजी ने बड़ी गम्मीरता से कहा,
*'तुम्मारे स्वामी को मेरे ऊपर आज्ञा करन का क्या अधिकार है
रूम कुशाठ पूर्वक यहां से चढ़े जाओ नहीं तो तुम्हें कष्ट भोगना प-
'ेगा” । शिवाजी के इस रूखे उत्तर को सुन दूत वीजापूर लौट आया
भोर अपन स्वामी से शिवा का सन्देशा कह स॒नाया। दूत के मुह
थे अमिमान पूर्ण उत्तर सुन वादशाह को वड़ाही क्रोध हो आया
कर इस दर्प को दमन करने के दिये अनेक सैन्यो के सहित स्वयं
दाह ने शिवाजी पर चढ़ाई की । दो वर्पछों युद्ध चढता रहा
समें मरह्टीं की बहुत सी जागीर वीजापूरवाढे के अधिकार में चली
गई परन्त अन्तिम छाभ का भाग दशिवाजी की ओर रहा ।
सच १६५४९ में कि जब वीजापूर के बादशाह ने शिवाजी
पेता शाहनी को कैद कर लिया था, उस समय शाहनी को मुधोल
गे जागीरदार वजिघुरपुरा नामक मनुष्य ने विश्वासघाव से गिर-
प्तार करवा दिया था । गिरफ्तार होने के उपरान्त शाहजी ने अ-
ने पुत्र शिवाजी को लिखा था कि धोरपुरे ने मेरे साथ बड़ा निश्वा-
घिंति ककया हे इसालय, तुम्हारा, सचा वारता ता तभा: ह कक इस
बी,
User Reviews
No Reviews | Add Yours...