राजस्थानी-साहित्य-संग्रह भाग 3 | Rajasthani Sahitya Sangrah Bhaag 3
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
361
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१.६० এ
क्षण असह्य हो उठे । दूसरे ही दिन राणा भीम को ज्यो ही पता लगा कि कोई
विलक्षण व्यवित अपने दलबल सहित सहेलियो की बाडी में ठहरा हुआ है, तो
उन्होने मिलने की इच्छा प्रगट की | जगमदिर में दोनों का मिलना हुप्रा।
राणा ने जब नमस्कार किया तो पुरोहित ने केवल राम राम कह दिया और
ग्राशीर्वाद आदि न दिया। राणा ने क्रुद्ध होकर इसका कारण पूछा तो उसने
बताया कि में भ्रनमी हू श्रोर रघुवश तथा नरवर के शासको के अलावा किसी
को नमन नहीं करता । महाराणा ने उसके अनमीपने के ओऔचित्य को स्वीकोर
किया परन्तु जब उसने साधारण ब्राह्मण न होकर तलवार के बल पर खेलने
वाला योद्धा अपने आपने को कहा और इसी सदर्भ मे परशुराम के द्वारा २१
बार क्षत्रियों का विध्वस करने की बात आई तो फिर बात बढ गई। राणा ने
उसके दल-बल को देख लेने की चुनौती तक दे दो । पुरोहित ने श्रपने डेरे पर
लीट कर शिवलाल धाभाई को सारी बात कही | धाभाई ने किसी प्रकार की
परवाह न करने को कहा श्रौर श्रपनी सहायता के लिये फौरन अपने पगडी बदल
भाई सिवाने के राव बहादुर को चुने हुए योद्धाओ के साथ सहायतार्थ आने के
लिये लिखा । राव बहादुर श्रा पहुचा।
ज्योही तीज का त्योहार श्राया, पुरोहित श्रपने साथियो सहित স্টীল श्रादि
का सेवन कर तीज का उत्सव देखने पीछोले पर एकत्रित हो थए । उधर हीरा
भी श्रपत्ती सहेलियो के साथ बन ठन कर चहाँ श्रा पहुची । सुनिश्चित योजना
के अनुसार देखते ही देखते बगसीराम ने हीरा को श्रपने घोडे पर बिठाया और
वहा से निकल पडा। मेले में भगदड मच गई और शहर मे शोरगुल हो गया ।
राणा भीम ने पती लगते ही श्रपनी फौज भेजी) दोनो पक्षों में घमासान युद्ध
टग्रा । पयित ने हीरा श्रौर उसकी दासी केसर को पहाडीकीश्रोटमे घोडेसे
उतार दिया प्रर स्वय विषक्षियो परं टूट प्रडा । काफी संमय तके युद्ध होने पर
दानो पक्षो के अनेक योद्धा मारे गये परन्तु विपक्षियो की क्षति श्रधिक हुई ।
पुरोहित हीरा को लेकर अपने निवास स्थान लौट गया । अपने सहयोगियों का
आभार प्रस्ट किया ओर हीरा के सौन्दर्य का निश्शक होकर उपभोग करने लगा ।
লণী সানী ম विभिन्न त्योहारों का श्रानन्द लूटते हुये श्रनेकानेक प्रकार की प्रम-
जीटाप्रो मे रत होकर समय व्यतीत करने लगा ।
कथा का बेशिप्ट्य--
यह तवा झनमेल विवाह के दुप्परिणामो को प्रकाश में लाने की दृष्टि से
लिसी गई है। हमारे देश में अनमेल विवाह की प्रथा काफी लबे समय से
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