श्रृंगार शतक | Shringar Shatak

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Shringar Shatak  by Bhartṛhari

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महाराज भर्तृहरि लगभग 0 विक्रमी संवत के काल के हैं
ये महाराज विक्रमादित्य के बड़े भाई थे और पत्नी के विश्वासघात
के कारण इनमे वैराग्य उत्पन्न हुआ

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हे (५ ) कामेन विजितों ब्रह्मा, कासेन विजितों । कासेन विजितः शम्सु, शक्त: कामेन निर्जितः ॥ _ अर्थात्‌ कामदेवने ब्रह्मा, विष्णु, मदेश और सुरेश-इन चारोंको जीत लिया । जब भगवान्‌ कामदेवने ऐसों-ऐसोंको हो अपने वशरमे करके, मन्माने नाच नचाये, तब और किस की कही जाय? साराँश यह, भगवान, कामदेव सबसे अधिक बलवान, हैं , इसीसे कवि महोदय, सब देवताओंको छोड़ सगवान्‌ कामदेवकों ही नमस्कार करते हैं । पाध्वात्य विद्वानोमेंसे एंक गोथे नामक मदापुरुष कहते हैं 15 8. 70896, का. प्रा08एठ फिपडॉड फेक 13 ब्हामदेव खदा छल करता हैं, जो उखका विश्वास करता है, वह घोखा खाता है । कोई कुछ कहे, दम तो यही कहेंगे कि, खुबसूरतीमें बड़ी झमता है। खूबसूरती पुरूष को अपनों ओर उसी तरह खींचती है ; जिस तरह चुम्बक पत्थर लोहेको खींचता है। पोप महदोदयने कहा भी है-- पक्का पड 8 डात प्रात,” सुन्दरता एक बालके द्वारा भी दमको अपनी ओर खींच सकती है। चनिंग ं सद्दोद्य भी कहते पड 25 , का. का . 68806. सौन्दयं की सत्र सत्ता है । मतलब यह है, कि पुरुष सौन्दर्य का दाख है। जिसमें भी, बक़ोठ ढावेठ. महाशय के 5, 8, 9 फ़ाणाा8ाी 068760+ 1602 साध्वी स्री संतारका सब्वत्तिम पदार्थ है ; अतः ऐखे थी कि जहा जे




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