रघुवंशाम् | Raghuvansham
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
729
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ३ )
वटी हौ । साजा दिलीप तथा उनकी धर्मपत्नी मगधराजकुमारी सुदक्षिणा ने
श्रद्धापुरवेक चरण स्पर्श कर उन्हें वन्दना की और गृरु तथा गुरुपत्नी ने बड़े प्रेम
से आशीर्वाद देकर उनका सत्कार किया । बाद महपि ते उस राजपि से पूछा
कि आपके राज्य में सब कुशरू तो है न ? तब उत्तर में उन्होंने कहा--आपकी
कृपा से राज्य में राजा, मन््त्री, मित्र, राजकोष, राज्य, दुर्ग और सेना ये सातों
भंग भरपूर हुं! अग्निजक, महामारी मौर अकार मृत्यु इन दैवी आपत्तियों
तया चोर, डाकू, शत्रु आदि मानुषी आपत्तियों को दूर करने वाले तो आप बैठे
ही हैं। आपके मत्त्रों के प्रभाव से मेरे राज्य में कोई कष्ठ नहीं है। आपके
ब्रह्मतेज के वल से मेरी प्रजा में कोई भी न तो अल्पायु है, न किसी को किसी
प्रकार ईतियों या विपत्तियों का डर रहता है। जब आप स्वयं ब्रह्मा के पुत्र
ही हमारे कुल्गूरु होकर हमारे कल्याण की वातें सोचते हैं तो हमारा राज्य
निविध्त क्यों न रहे ।
पर महाराज ! आपकी इस पुत्रवधू सुदक्षिणा को सन््ततिहीन देखकर सप्त-
द्वीपा यह पृथ्वी मुझे अच्छी नहीं छगती । अब तो मुझे ऐसा जान पड़ता है कि
मेरे पीछे कोई मुझे पिण्ड देने वाला भी नहीं रह जायेगा । इसी दुःख से मेरे
पितर मेरे दिये हुए श्राद्ध के अन्न को न खाकर रोने रूगते हैं और सोचने लगते
हैं कि मेरे पीछे इनको कौन तर्पण आदि करेगा । इसलिए प्रभो ! अब कोई
ऐसा उपाय वताइए जिससे मुझे पुत्ररत्व हो और मैं पितृऋण से मुक्त हो जाऊं
क्योंकि इक्ष्वाकुवंशी राजाओं की सभी कठिनाइयाँ आपकी कृपा से सदा दूर हो
जाती रही हैं। राजा की बात सुनकर वसिष्ठजी ने आँखें वन्द कर क्षणभर के
लिए योगवर से ध्यान लगाकर सन्तति-निरोध का रहस्य जानकर राजा से
कहा--राजन् ! एक वार जब तुम देवासुर-संग्राम में इन्द्र की सहायता कर
पृथ्वी को लौट रहे ये तव मार्ग में कल्पद॒क्ष की छाया में कामधेनु बैठी हुईं
थी । उस समय तुम्हारी धर्मपत्नी इस सुदक्षिणा ने रजस्वला होने पर स्नान
किया था । उसके पास पहुँचने की त्वरा के कारण तुमने कामधेनु की ओर
ध्यान नहीं दिया । उस समय तुमने उसकी प्रदक्षिणा न कर गलरूती कर दी ।
अत: उसने कुद्ध होकर शाप दे दिया कि जब तक तुम मेरी सन्तति की सेवा
न करोगे तव तक तुम्हें पुत्र नहीं होगा । उस समय बड़े-बड़े मतवाले दिग्गज
आकाशग्गंगा में खेलते हुए चिग्घाड़ कर रहे थे, इसलिए उस शाप को न तो
तुम ही सुन सके, न तुम्हारा सारयि ही ।
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