बच्चन : व्यक्तित्व और कवित्व | Bacchan Vyaktitva Aur Kavitva

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Bacchan Vyaktitva Aur Kavitva by जीवन प्रकाश जोशी - Jeevan Prakash Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ उनकी भनेक कविताओं में उनके নিল रौर भ्रक्वड व्यदितत्व की स्पष्ट माकी मिलती हैं। यहाँ व्यजता व्यापक र 1 यह व्यजना व्यवितत्व की सही पहचान है, जिसे समभवर भौर उसे व्यवितत्व मे भ्रनुमव करके क्सि भ्रपते प्रर नाच न होया ?-- बच्च बनाई छाती मैंने चोट करे तो घन शरसाए, मीतर-मीतर जान रहा हू जहा छुसुम लेकर तुम भाए श्रौर दिया रख उसके ऊपर टूक-टूक हो बिखर पड़ेगी और ये भी कि-- हो समोी के हेतु खुखकर, हो पभंगर मेरा उदय भी >< > >< बच्चन कठिनाई के समय झपनी शक्ति भर काम झाते है। मुझे याद है कि श्री शिददत्त तिवारी के नाती धर्मेश की पढाई के लिए कई हजार के सरवारी ऋण-पत्र पर एक झामिन के रूप म बच्चन जी ने इस तरह दस्तखत कर दिये थे जैसे वह कर्जे अपने हो लिये ले रहे हो । किसी का सफट दूर करने के लिये वे टेलीफोन से लेकर पैदल चलने तब कुछ करने कहने से मुंह नही मोडते । यह दूसरी बात है कि तिक्डम के झमाव में सफवता न मिले । बच्चन उख्ाड-पछाड भौर तोड-फोड की शक्ति से वचित है ) यहाँ वे हार जाते हैं ) बच्चन दे व्यक्तित्व मे कही पर कुछ विरोधाभासवत्‌ भो झनुभव होता है। लेकित मूलत वह जीवन की परिवर्तित होती हुई झायु झौर स्थितियों का परिणाम बहा जा सवता है । भव बच्चन के स्वभाव में शशव का सारल्य है, यौवत वी तरलता-तपिश्नन्तुर्शों मी है और बुढ़ापे की गुरुता-गम्भीरता तो है ही । बच्चन के सस्कारों भ रूढियो के प्रति विद्रोह हे, नवीनता के प्रति झास्था झौर पभाकपण भी | झौर इस सबवे ऊपर उनमे प्राचीन, पावन सस्वारो के प्रति एक ऐसी सूक्ष्म प्रास्या भी है जो भारतीयता को रीढ है और जो उन्हे 'सियराममय' दुहराते रहने को उक्साती है। बच्चन को सुरुचि से सहज लगाव है । उन्हे गाधी जी की वह लेंगोटी भी सुरुचि या डेक्रमगुक्त लगतौ है जो एकदम घुली चिटूटी रहती थी। मै जानता हूँ अगर उन्हें नेहरू थी की सुरुचि भनुकरणीय लगती है तो शास्त्री जो की सरलता भी प्यारी है 1 न्वन सुचि भ्रौर सरता को जीवन झौर व्यक्ततित्द मे साथ-साथ बनाये रखने के हिमायती हैं । जिसमे इन दोनो मे से बेवल एक है झौर दूसरी का भ्रभाव है, निश्चय हो बच्चन जी उसके भालोचर हो सकते हैं--फ्रि चाहे वह नेहरु जी हो या शास्त्रीडी | झौर छुल मिलाकर बच्चन का व्यवितत्व एक वृत्त हैं जिसे हम यदि ीवन कौ




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