आधुनिक हिंदी कविता में विषय और शैली | Adhunik Hindi Kavita Mein Vishya Aur Shaily

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : आधुनिक हिंदी कविता में विषय और शैली  - Adhunik Hindi Kavita Mein Vishya Aur Shaily

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रांगेय राघव - Rangeya Raghav

Add Infomation AboutRangeya Raghav

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
सत्य, शिव और सुन्दर १६ रस सम्प्रदाय का जन्म सामत-काल के विकासशील युग मे हुआ था, प्रत दास-प्रया के श्रामे होने के कारण उसमे समाज का कल्याण करने को झवित थी । परन्तु सामन्त-काल के मतिरोधो और उच्चवर्गीय प्रभुत्व ने काव्य को, सम के विरोध में ध्वनि, रीति आदि के जास में, प्रभिजात्य वधतो में बाथने को चेष्ठा की, और यद्यपि वे समाज को उतना पोछे तो नहीं हटा सके कि 'रस' की प्रगति को भुठा दे, परन्तु उन्होंने काव्य के बाह्य परिवेष्टन अवश्य दुरूह वता दिए । आधुनिक काल के यूरोपीयवाद मध्यवर्गीय टुटपूजियों की वर्ग-व्यवस्था में से जन्म ले सके हैं। उनमे आधुनिकता का फैशन है, और वे मूलत सामतीय काव्यशास्व के आगे नहीं ले जाते, बल्कि यो कहना उचित होगा कि सामतीय काव्यशास्त्र जहा সঘন दायर के मीर पूर्णं है, वहा ये झावुनिकवाद उतने भी पूर्ण नही हैं। आचार्य रामचद्र शुक्ल ने इन्हे “व्यक्ति-वैचित्यवाद' मे रखा था, किन्तु ये तो उतने में ही समाप्त नही हो जाते । चदय वे मे ये रम का पन्ता पकडने हैं। प्रौर यह इनका सबसे बडा खोखलापन है, क्योकि सौन्दर्य के ग्रनिर्वेचतीय निरपेक्ष आनन्द की उच्च भावभूमि को तमी रस-सम्पदाय में उच्चतर चमझा गया है, जब उसमे साधारणीक्रण का भाध्यम स्वीकार कर लिया गया है । यौन प्रवृत्तिया जौ हाल से चनौ रातौ दँ पर पूरे रोतिकाल में सामतीय बन्धनों में रही, वे ही इन मये वादो में नये रूप लेकर उठ खड़ी हुई हैं । इन समस्त प्रपरिपक्ताम्री ने साहित्य पर घातक प्रहार क्या है । यहा कवित्व को न देखकर, उसकी कविता को न देखकर, कविमात्र को ही देखा जाता रहा है। रहस्यवादियों द्वारा समादृत कविकुसगुर रवीत्धनाथ ठाकुर ही अवजाने मे প্রজা यतत' लिख गए ये, जहा उन्होंने जीवन के कठोर सत्यो का वर्णन करते हुए सशस्त्र विद्रोह न्यायोचित बताया था। शेक्मपियर दरबारी-युगीन कवि था, किन्तु उसकी रचताओ मे मध्यवर्ग की उठती चेनना का प्रतीक दिखाई देता है। ताल्मताय ईसाई ग्रहिसावादी या, प्रतु लेनिन ने उसे क्राति का दर्पण कहा है। प्रेमचन्द्र अरहिसावादी था, वर्गवाद उसमे समन्वयवाद का स्थान लेता है, किन्तु उसने किसानो की चेतना को उठाया और राष्ट्रीय आदोलन को प्राये वडापा। भणि मौकवियोको वाणी को देखने की सवमे बडी प्रावश्यकता है, न कि उनके बाह्य वन्धनो, गुटो, पाटियो, ग्रादि को ही देखकर उन्हें छोड दिया जाए। आगे आपको इसके अनेक उदाहरण मिलेंगे, कि श्रे, यह इसी व्यक्त ने लिखा है|” ऐमे वावय तक आपके मुख से निकल जाएगे। [१] हमे एक पोर काव्य को वाद, व्यक्ति, देश, काल प्रौर वर्ग भूमि के ऊपर उठ- १ दाद, (र्गनरान सि कै मानदण्ड ले० रागेय राप




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now