ऐतिहासिक स्थानावली | Etihasik Sthanavali

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Etihasik Sthanavali by विजयेन्द्र कुमार माथुर - Vijayendra Kumar Mathur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है ऐतिहापिक स्थानावप्तो जनय झंभवतः घपा । इुंदघरित 21,1 के अनुसार बुद्ध ने अगन॒गर ঈ पूर्णभद्र यक तया कर नामो को प्रद्नजित किया था । ध्गारप्तुर दे» पिप्यतिशाहन জনবল वराहुपुराण 80 में उल्लिखित सभवत. पजाव की सुलेमान-गिरिश्वलला। धंखनदन साकेत फे निकट एके धना वन जिसमे हरिणों गा निवास था। यहाँ पौतमवुदध ओर फटतिय नामक परिव्राजक में दाश्निक वार्ता हुई थी (संग्ुत्त० 1,54,5,73) | झंघमी (म० प्र०) मर्मेदा की सहायक नदी । नर्भशा और अजती वा संगम गौरीतीषं नामक समान ने निकट हुआ है जहां विपरिया होकर मार्ग जाता है । झडोल (विला मेदक, ऑ० प्र०) यह स्थान प्राधीन भदिरों के अवशेषो के छिए उल्लेखनीय है। झ्रतगिरि हिमालय परव॑त-प्रेणी का सर्वोच्च भाग जिसमे गौरीशकर, नदादेवो, केदार- भाष, यदरीनाप, त्रिशूस, धवलगिरि आदि चोटियाँ अवस्थित हैं जो समुद्रतल पे 20 सहत एट से अधिफ জঘী £। মহা” सुभा० 27.2 में अवगिरि का उल्लेख इस प्रकार है--'अतगिरि घ॒ कौंतेयस्तपव च॑ बहिगिरिप्‌ तर्शवोपतिरि षेव विजिग्पे पुरुषर्षभ !। एस प्रदेश शो अर्जुन से दिग्विज्ययात्रा के प्रसंग में जीता था। पाली साहित्य मे अवगिरि को महाहिमवत भी कहा गया है। अंग्रेडी मे इसो वो 'दि प्रेट सेंट्रल िमाठया' कहा जाता है। जैन सूत्रन्मय अवुद्वीप-प्रशप्ति में भी इसका महाहिमवत माम से उल्लेण है। झ्रहवेंदी (उ० प्र०) शगा-्यमुदा के दीण का प्रदेश अपदा दोआया। अत्वेदी नाम प्राधीन सप्त अभितेखो मे प्राप्त है । स्कदगुप्त के इदौर ते प्राप्त अभिते मे गतव दि- विषय बे धारक सर्यनाये शा उत्ठेय है । #॥ झंवाणों पिरिया या शाम देश मे त्थित एटिओकस नामव स्याने का प्रपीने षरक्केत रूप बिसका उत्ते महाभारत मे दै--'अतायी षेय रोमां प यवनानां पुर तया,




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