अनबूझे सपने | Anbujhe Sapne

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झनबूझे सपने : झमरनाथ भी मुसकराने लगा । उसने कोई उत्तर नहीं दिया । प्रतिभा चाय वनाने लगी । अमरनाथ ते पूछा; “वकील साहब नहीं दिखलाई पड़ रहे हैं । प्लौकर को लेकर मार्कट गये हुए दै 1 आते ही होगे । लीजिये, इसे ती शुरु कीजिये 1 श्रीमती ने तश्तरियों की तनिक श्लौर भागे कर दिया 1 “यह तो तकल्लुफ हो गया । मं अ्मी-अभी नाशता करके चला भा रहा हूँ । “ड्वैर, थोड़ा ही सही । उठाइये। “तूमने भाभी, प्रतिभा वोल पडी, ध्योडा खुब कह दिया । इसमे मी थोडा ।'' उसने श्रमरनाय के सामने चाय की प्याली रख दी । “मेरे कहने पर विश्वास कीजिये । में खाने-पीने के मामलों में वडा साफ हूं । विल्कुल इच्छा नही है । भाप लोगो की जवान न खाली जाये, इसलिये चाय पी लूँगा ।” “भरी जबान तो खाली रहेंगी ही अमरनाथ जी টা “क्यो ?' चाय प्रतिभा के हिस्से में पडी है ।मेरे मे तो नमकीन और मिठो इयाँ आती है ।” वह मुसकराने लगी अमरनाथ को विवश हो खाना पड़ा । प्रतिभा ने वातों का सिलसिला वदला, “श्राजकल मी श्राप कोर नावेल लिख रहे होगे ए রি प्रमी तो नही, लेकिन यहाँ से लौटकर जाने परआरम्भ करेंगा 1 जो उपन्यास आपने पढी है, वह अभी हाल में ही प्रकाशित हुआ हैं। “बहुत अच्छा लिखा है। स्पेशली, उपा झौर उस अ्रपाहिंज की मनोदकझ्ा का चिंत्रण साकार हो उठा है श्रीमती ते पूछा, भाप की वहिन जी भ्च्छी तरह हैँ जी हाँ ]' ढ़




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