गुरु भक्ति मार्ग | Guru Bhakti Marg

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Guru Bhakti Marg by प्रभुदुत्त जी - Prabhudutt JI

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ ठ | हमारे अनुकूल नहीं है, हम नहीं खायेगे । तो भगवान बोले, यदि आप नहीं खायेगे तो आपके शिष्य खा लेंगे । आपके लिए मौर बन जाता है। गुरुदेव दृढ़ता से बोले--यदि हम नहीं खायेंगे तो हमारे शिष्य भी नहीं खायेगे। यह सारा भोजन सागर में फेंक दो । आज्ञा पाते ही सारा भोजन सागर में फक दिया गया] ध फिर भोजन दूसरी बार बना वह भी गुरुदेव ने समुद्र में फिकवा 'दिया। उत्तेजित हो बोले--आपने बिना पूछे भोजन को बनवाया । पहले पूछता चाहिये था कि आपके अनुकूल कौन सी वस्तु है या 'नहीं । तीसरी वार पूछ कर भोजन बनवाया । तब गुरुदेव ने शिष्य मंडली के साथ भोजन कर रात्रि वहां बाग में विश्राम किया। राज- भवन एवं नगर में यह चर्चा फेल गई। प्रातः उठते ही श्रीकृष्ण जी गुरुदेव को प्रणाम करने गए तो दुर्वासा जी बोले--हे कृष्ण, अब हम यहाँ से प्रस्थान करेंगे | तो कृष्ण जी बोले, मेरा रथ है। आप रथ पर बैठ पधारें । गुरुदेव बोले--पदयात्रा ही ठीक है। भगवान ने कहा--भाज तो रथ को पवित्र करो। अवश्य प्रार्थना मानकर उस पर ही वंठे। तब ग्रुर्देव बोले--जैसा रथ हम चाहते हैं उसी प्रकार का रथ लावो, तब चढ़ेंगे। तो भगवान कृष्ण ने कहा--आज्ञा करो। गुरुदेव बोले, रथ तो वही हो, पर घोड़ों की जगह एक तरफ आप और एक तरफ रुक््मणि पटरानी-दोनों जुतो। तब हम चढ़ेंगे, अन्यथा नहीं ।” कृष्ण जी बोले--मेरा शरीर तो हाजिर ই । यदि आज्ञा हो तो रक्‍मणि जी से पूछ लिया जावे । गुरु बोले--ठीक है । भगवान कृष्ण महल में गये और रुक्मणि से कहा--'हैं रुवमणि श्राज एक प्रतिज्ञा करो । उसने कहा--कौन-सी 1 छृष्ण वोते-- वतना यह है कि तुम कहो कि वह में करूँगी। रुवमणि ने कहा--मुझे प्रथम बताया जावे । सम्भव है कि वह्‌ मूसे हो सके या नहीं । भगवान वोते-- पतिव्रता नारी व्या नहीं कर सकती ? तो सक्मणि वोली तन, मन, धन सब आपका है। प्रभु बोले--आज का कार्य तन, मन धन ऐे परे




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