महात्मा बुद्ध | Mahatma Buddha

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Mahatma Buddha by Sukhasampanti Rai Bhandari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हे सडात्मा बुदद । कि दि व व ० अधि सिर लि कह हक /५ हा अभि शी है की कक थी कह ७ कस का अथ # कक रेप थ सका आर ले गये। इस समय कपिलवसतु को शोभा परस सनोहर थो। जगछ जगह आनन्द सनाया जा रहा था। घर घर में तोरणादि सुशोभित किये गये थे। अनेक तरकको दिव्य सामग्रियोंसे सकान सजाये गये थे। मतलब यह कि उस समय कपिलवसुको शोभा खगके समान छो रहो थो। सच तो यक्ष है कि कपिलवसु उस दिन अपनों मनोहर शोभा से सुरपति को सुरपुरो का सिर नोचा कर रो थो । बौद-धर्म-शास्त्रों में लिखा है कि इस समय ट्वताओंमें भी आनन्द छा रहा था । देवतागण पुष्प-छृष्टि कर रहे थे । गन्धव्व अनेक तरद के मनोहर गोत गारड़े थे । तोनों छो भुवनोंमें स्वगलोक और सत्यलोक को तो बात को क्या--नरक तकमें एक चण के लिये शान्सि छा गई थो। नागराजने एक तरदके देव प्रथम सद्दात्मा बुद का ्रभिनन्दन किया और उनके अभिनन्दनाथ सन्दार पुष्पको वष्टि को और जगत्‌के उद्दारके लिये अवतीण हुए इस मद्दापुरुष को नमस्कार करके आनन्द और भक्ति-भाव प्रदर्शित किया । इस समय हि सक जन्तु अपना अपना स्वाभाविक विरोध भ्यूल गये। इस वक्त सब तरद के रोग और पोड़ाएँ लोप हो गई । इस तरद चह और शान्तिका अटल राज्य होगया । यदि इस समय कं अशान्तिका राज्य था तो वह मसारराज आऔर सोइराज के ऋट्यमें था । जगदुद्दारक पुर्षोंका जन्म ऐसोंके लिये दावा- नल का काम देता दै ।




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