गुल्स्तान | Gulstan

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दाताराम मुनि Dataram Muni

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राजेंद्र मुनि - Rajendra Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कुसुमोद्यान अब तो घबरा के यह कहते कि मरं जाएँगे। मरके भी चैन न ,पाया तो किधर जाएँगे।॥। अगर गेती सरा सर बाद , गिरद । चराग मक्कबीला हरगिजु नमीरद ॥ मूलार्थ- अगर ` भ्रात्मा की रएक्रितियो' को ऊच्चे शिखर पर ले जाना बाहते हो तो, सच्चाई का भ्रति सुन्दर जरगमगाता चराग | जबरदस्त तूफानों से गुल नहीं ही सकता ॥ राही कहीं है राह कहीं राहुबर कहीं | ऐसे भी कामयाब हुआ है सफर कहीं ॥ दिन गुजरते ही चले जाते हैं; लोक मरते ही चले जाते हैं जानते हैं कि यह ' गफलत के काम हैं ॥। फिर भी करते ' ही क्ते जाते हैं । खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तकदीर से पहले ॥। खुदा वंद्रे से खुद प्रूष्ठे बता तेरी रज़ा जया है! ना बीना खज्लांदिद , वाबुफत आहे हमक 1) व रोज सब परीसेतु दरचश्मे तू बराबर । व प्रकस्तान अस्त का গজ राग तूरा फायदे चीस्‍्त ॥ मूछर्थ-आरधला भान रस्ते खयर हय गर दीका लेके चला “ ला' रहा था-पअन्य पुंर्ण उसको पएछता है कि भाप ग्रह फानस हाथ में लेकर कहाँ जा रहे हो तो उसने जवाब दिया कि दूसरों से बचने के लिए हाथ में दिवा लिया हैं।।




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