पुरुदेवचंपू | Purudevchnpu
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(७)
दिविधा: सुौदश्ो भांति यत्न मक्तोपपा: स्थिताः ॥
राजहंधाश्व सरेंसां तरंगविभवाश्रिता। ॥१६॥
या खल घ॑नश्रीसंपन्ना निश्र्ततामोद्सुमनोमिरामा सकलमुदृग्मि: शिरसा
छाध्यमानमहिममाहिता विविधविनिन्नविशोमितेमालाब्या अलकामि-
घानमहेति ॥
अलकाभिख्यया जुष्टा विकचान्नसगएखो ॥
निस्तमस्काऽपि या चित्रषुत्तमस्फुरणोञ्ज्यला ॥१७॥
शास्ता तस्याः सकलखचरल्मापक्नादीरकादी-
खेलन्मालासदशविरसच्छासनः संबभूव ॥
धीरः श्री मानातिवल इति ख्यातनामा ख्गद्रः
प्रख्यात श्री निजकुलमहामे रुप दा रशाखी ॥ १८ ॥
गंगीयंति सदा समस्तसरितो रोध्याचलंत्यद्रयो
१ ভতগ হী বগা বা: ভয়ে: ललऊन : | ভু, दृग्दशने येषांते सुदृशः
सम्परद शन संपज्ञाः । २ अनुउमाः मौक्तिकोपमाश्च | हे कलहंसाः, नुपोत्त-
माश्च । ' राजईसत्तु कादबे कछहंसे नृपोत्तमे ? इति विश्वकोचनः । ४
शरधां तरगनिमवाभ्रेताः। नुपशरष्ठाः सस्नेहमनसे बेभवयुक्ताः करूहंशाश्
सरोवराणां लद्टरीवेमवसंयुक्ताः। ५ विपुल्संपदापेता, मेघकान्तिसंपन्न:अ |
६ सानंदे/बंदद्मी स्मणीया, वुगंधिपुष्पै रमणोयाश्च । ७ विविपैर्विचित्रै
पिभिः पश्षिभः शोभिना ये तमालतरवः तैरेयब्या, केशपक्षे विविष
विचित्रविशोमितपुष्पष्ारषंपल्लाः । ८ कमलस्षरोवदना या नगरी अका
[ अलकाश्रृणकुन्तछा: ] इति नाम्ना युक्तापि विकथा केररहिता इति
बिरोषः, परिहारस्तु अलका इति नामघारेणी या पुरी प्रोत्फुछ्कमल
युक्ततरामुखी विराजते | तथा तमोरहितापि थालका नगरी उत्कृश्तमों-
बाहुस्येन प्रकाशसंयुक्तेति चित्रं, परिहारस्त्वेव तमोरहिता या नगरी
उद्बर्त तमश्रः स्फुरणं यस्या: एताइशी अस्ति । ९ प्रथ्वीपतिः ।
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