और बाबासाहेब अम्बेडकर ने कहा...... | Aur Babasaheb Ambedkar Ne Kaha Vol. 1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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है कि मेरी जाति क्या है और यह बताना उनके लिए बेहद जरूरी है। मतलब यह कि अपनी अभिप्रेत इनसानियत व्यक्त करने के लिए हर हिन्दू को अपनी असमानता को पग-पग पर जाहिर करना पड़ रहा है। हिन्दू धर्म को माननेवाले लोगों में यह असमानता जितनी आश्चर्यजनक है उतनी ही वह निन्‍्दनीय भी है क्योंकि असमानता के अनुरूप व्यवहार का स्वरूप हिन्दुओं के चरित्र को बिल्कुल शोभा नहीं देता है। हिन्दू धर्म में पैदा हुई जातियाँ ऊँच-नीच की भावना से प्रेरित हैं यह बात सभी को मालूम है। हिन्दू समाज एक मीनार है और हिन्दू धर्म की जातियाँ उसकी मंजिलें हैं। किन्तु ध्यान में रखने की बात यह है कि इस मीनार की सीढ़ियाँ नहीं हैं। इसलिए एक मंजिल से दूसरी मंजिल पर जाने के लिए यहाँ कोई रास्ता नहीं है। जो जिस मंजिल पर पैदा हुआ उसे उसी मंजिल पर मरना है। नीचे की मंजिल का आदमी फिर कितना भी लायक हो उसे ऊपर की मंजिल में प्रवेश नहीं मिलता है। और ऊपर की मंजिल का आदमी कितना भी नालायक हो उसे नीचे की मंजिल पर धकेलने की किसी में हिम्मत नहीं है। स्पष्ट शब्दों में कहा जाए तो जातियों में यह जो ऊँच-नीच की भावना है उसकी पैदाइश गुर्णों-दुर्गुणों की बुनियाद पर नहीं है। ऊँची जाति में पैदा हुआ आदमी कितना भी बुरा क्यों न हो लेकिन वह अपने-आपको ऊँचा ही समझता है। इसी प्रकार नीच जाति में पैदा हुआ आदमी कितना भी चरित्रवान क्यों न हो लेकिन वह नीच की समझा जाता है । दूसरी बात यह है कि जिन जातियों में आपस में रोटी-बेटी का व्यवहार नहीं होता ऐसी हर जाति एक-दूसरे के प्रति आत्मीय सम्बन्धों से रहित है मतलब जातियाँ समाज की टूटी हुई कड़ियाँ हैं . नजदीकी सम्बन्धों की बात को यदि कुछ देर के लिए अलग रखा जाए तब भी आपस के लोकव्यवहार ऐसे नियन्त्रित हैं-कि कुछ लोगों का व्यवहार दरवाजे तक है तो कुछ जातियाँ पूरी तरह अछूत हैं। मतलब इस जाति के आदमी ने छू लिया तो अन्य जाति के लोगों को छूत लग जाती है। छूत की वजह से इन अछूत जातियों से अन्य जाति के लोगों का शायद ही कभी व्यवहार होता है। रोटी-बेटी व्यवहार के अभाव में जो परायापन कायम हुआ है उसने छुआछूत की भावना को इतना बढ़ावा दिया है कि इस तरह की जातियाँ हिन्दू समाज में होकर भी समाज से बाहर लगती हैं । इस व्यवस्था की वजह से हिन्दू धर्म में ब्राह्मण अब्राह्मण बहुजन और अछूत इस तरह के तीन वर्ग हैं। उसी प्रकार इस असमानता के परिणामों की ओर ध्यान दिया गया तो यह दिखाई देगा कि इसी वजह से विभिन्‍न जातियों पर विभिन्‍न प्रभाव पड़े हैं । सबमें ऊँचा ब्राह्मण वर्ग मानता है कि हम भूदेव हैं । सभी आदमियों का जन्म हमारी सेवा के लिए हुआ है। ऐसा माननेवाले भूदेव प्रचलित असमानता के पोषक ही हैं। और इसीलिए वे लोग अपने स्वनिर्मित अधिकारों से अपनी सेवा करवाकर स्वयं बेध ़क और बेझिझक मलाई खा रहे हैं। क्या इसके लिए उन्होंने खून-पसीना बहाया है? उनसे यह सवाल पूछा जाए तो उनके पास इसका कोई जवाब नहीं । ज्ञानसंचय और धर्मशास्त्रों 12 / और बाबाताहेब अम्बेडकर ने कहा... 1




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