दर्शन का प्रयोजन | Drashan Kaa Prayojan

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Drashan Kaa Prayojan by भगवान् दास - Bhagwan Daas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विषय-सूची बाद, 'मत', बुद्धि , दृष्टि, राय! शक “जगह बदली, निगाह बदली! कप “दशन शब्द्‌ का रूट अथं ५ “वाद, “-इज़्म' वाद्‌, विवार, सम्वादः “दर्शन! का प्रयोग, व्यवहार मे न्यास का दुष्प्रयोग मन्दिरों का दुरुपयोग आत्मज्ञानी ही व्यवहार-कार्य अच्छा कर सकता है ** “प्रयोग” ही प्रयोजनः कं वर्णाश्रम व्यवस्था की वत्तमान दुदेशा; अध्यास्म- शासत्र से जीर्णोद्धार कह निष्क्प के राजविद्रा, राजगुद्य बिना सदाचार के वेदांत व्यर्थ धर्मसव॑ स्व की नीवी, सर्वब्यापी आत्मा कारावास-परिष्कार, सेंको ऐनालिसिस, आदि दर्शन की परा काष्टा सर्वेसमन्वय खप्र ओर भ्रम भी, किन्तु नियमयुक्त भी अभ्यास-वेराग्य से आवरण विक्षेप का जय दर्शन भौर धम से स्वार्थ, परार्थ, परमार्थे सभी ... दशनः से गढार्थों का दर्शन मानव-समाज-भ्यवस्था दी नीवी अध्याय ५--पौराणिक रूयकों के अर्थ पौराणिक रूपक बारह रूपकों का अथ कुछ अन्य रूपक রর रूपकों की चचो का प्रयोजन ১০, सभी ज्ञान, कम के लिये हि धम ओर दर्शन से स्वार्थ परार्थ परमार्थ सब का साधन हट १२३२७ १२९ १३१ १३३ ৭ 54 १२३ १२४ १३८ १३९, १४१ १८४ १४८ 1०5 1५४ १.५५ % ५५. १७९, १८५५ १८५६ १८.




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