तुलसी के चार दल | Tulsi Ke Chaar Dal

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Book Image : तुलसी के चार दल  - Tulsi Ke Chaar Dal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राभणता नहछू ७ टिप्पणी--( १ ) दूसरी पंक्ति का यह भी अथे हा सकता हे कि दँबोलिन स्वयं जिस किसी का देखती है उस पर यह प्रकट कर देती है कि वह अपने का बलिहार करती है, अर्थात्‌ सारे हाव-भाव दिखलाती है। किंतु इस प्रकार भी यही अथे निकलता है कि वह उनके मन का अपने साथ कर लेती है अथवा मुग्ध कर लेती है। इसी अथे को रहीम यों प्रकट करते हैं :--- सुरंग बरन बरइन बनी, नेन खबाये पान। निसि-दिन फेरे पान ज्यों, बिरही जन के प्रान ॥ (२ ) केसर के रंग में मुख्य गुण यह है कि वह तेज बढ़ाने- वाला पीलापन लिए गेरुआ होता है, साथ ही उससे कपड़े में एक प्रकार की सुगंधि आ जाती है। ( ३ ) ऊपर के सभी छंदों की भाँति इस छंद में भी प्रसाद- गुण और स्वभावाक्ति अलंकार हे। मे।चिनि बदन-सकेचिनि होरा मॉगन हे।। पनहि लिहे कर सेमित सुंदर श्रांगन हे।॥ बतिया के सुधरि मलिनिया सु दर गातहि है| । कनक रतनमनि मार लिहे सुसुकार्तहि हा॥७॥ शब्दार्थें--मेचिनि--चमारिन । सकाचिनि--सिह्चेड़नेवात्ली (? ) । सुधरि ( सुघड़ )--सुंदर । पनहि ( उपानह्‌ )--जूते । अथें-दूसरों के छू जाने के भय से अपने शरीर के सिकराडकर खड़ी होनेवाली चमारिन हाथ में (भ्रीरामचंद्रजी के पहनने फे ल्य) जूते लिए हुए, सुंदर आंगन मे, शोभित ह और ( नेग में ) हीरा माँग रही हे। मधुरभाषिणी सुदर शरीरवाली मालिन सोने, रत्न तथा मणियें से जटित मार लिए हुए युसङरा रही हे ।




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