सूर का कथा-संगठन | Soor Ka Katha-Sangathan

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Book Image : सूर का कथा-संगठन  - Soor Ka Katha-Sangathan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२९ सप्रदस $ एक अ्रध्ययन अ्रमरगीत के प्रसंग में सूर ने काव्य का पुट देकर नए प्रसंग खड़े किये जेसे पाती-प्रसंग, प्राकृतिक वस्तुओं में उद्दीपन भाव ( चंद्र, मेंघ, कोकिल आदि के प्रति उपालम्भ ) । परन्तु मूल विषय भागवत को ही सामने रख कर लिखा गया है। उसमें निर्गंण के प्रति सगुण ऋष्ण ओर योग के सम्मुख भक्ति की प्रतिष्ठा है। भागवत में निगण और योग को महत्त्व मिला है--. सूर ने इनका विरोध किया है । उन्होंने सगुण ऋष्ण और भक्ति की स्थापना की है । मधुकर के प्रति के पदों में उन्होंने अनेक नूतन उद्भावनाएँ उपस्थित की हैं । इस विषय को उन्होंने अत्यंत विस्तार से लिखा है | दशेन, काव्य और भक्ति-कीजो त्रिवेणी अमरगीत में बह रही है, वह अन्य स्थान पर दुष्प्राप्य हे । केवल इसी के बल पर सूर को उनका वह पद मिल जाता जो आज उन्हें मिला हुआ है। श्रसंग को उपस्थित करने और उसके विस्तार का ढंग मौलिक हे । राधा-कृष्ण का पुनर्मिलन ब्रह्मवेबत्ते पुराण में हे ओर वही राधा की वियोगदशा काभी विस्तृत चित्रण है। सूरदास युराण से भली भाँति परिचित जान पड़ते हैं, परन्तु उन्होंने मिलन-प्रसंग को अत्यंतस्वाभाविक्र रूप से नये प्रकार से लिखा है | ब्रह्म पुराण को इससे अधिक श्रेय नहीं कि उसने राधा के पुनर्मिलन की कथा लिखी है--परन्तु वह अस्वाभाविकता और अनगेल बातों में दब गई है | सूर ने इस कथा में राधा के प्रेम की परिणति का चित्रण क्रिया है । रुक्मिणी के संग राधा के प्रेम- व्यवहार ने राधा के चरित्र को और भी उज्ज्वल कर दिया हे। वास्तव में राधा के विरहवर्णन और पुनर्मिलन के श्रभाव में उसका चरित्र-चित्रण अधूरा रह जाता । _इस प्रकार हम देखते हैँ कि सूर ने कथा की परंपरा को सुरक्षित रखते हुए भी उसका संगठन अपने ही ढंग पर. किया




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