नए एकांकी | Specimen Year
श्रेणी : पत्रकारिता / Journalism
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
109
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१२ नये एकांकी
से नाटक पढ़ने के लिए ही लिखा जाता रहा और उसके दृश्य-पहलुओं पर
बल पिछले कुछ वर्षों से ही दिया जाने लगा । एकांकियों के विकास में बहुत'
कुछ प्रेरणा रेडियो से मिली; लेकिन रेडियो भी क्योंकि दृश्य नहीं श्रव्य
माध्यम है, इसलिए रेडियो एकांकी भी बहुधा काव्य और नाटक के भेद की
उपेक्षा करते हुए चल सके । वास्तव में आधुनिक रेडियो-रूपक रूपक होते
हुए भी काव्य से पृथक और विशिष्ट एक प्रकार है जो श्रव्य होकर भी
विधान की दृष्टि से नाटक के निकट रहता है।
भारतेन्दु-काल में भारतेन्दु, राधाचरण गोस्वामी, बालकृष्ण भट्ट,प्रताप-
नारायण मिश्र आदि ने जो एकांकी लिखे, उनमें संवाद ही प्रमुख थे और
अन्य नाटक-तत्त्वों का अभाव था । इन एकांकियों की विषयवस्तु समकालीन
सामाजिक पृष्ठभूमि से ली गई थी, इस दृष्टि से तो कहा जा सकता है कि
वे आधुनिक थे, लेकिन ऊपर आधुनिकता का जो विशेष लक्षण हम बता
आए हैं, वह उनमें नहीं था । प्रसाद का एक घूंट' भी एकांकी है। इसके
सम्भाषण पर रवीन्धनाथ ठाकुर का प्रभाव लक्षित होता है, लेकिन रूप-
विधान की दृष्टि से वह आधुनिक एकांकी के बहुत निकट है और ऐसा
माना जा सकता है कि आधुनिक एकांकी की परम्परा वहीं से आरम्भ होती
है । 'प्रसाद' के बाद सुदर्शन, जनेन्द्रकुमार, चन्द्रगुप्त विद्यालंकार आदि ने
भी एकांकी लिखे, जो पठनीय ओर रोचक तो थे लेकिन रंगमंच को सामने
रखकर नहीं लिखे गए थे। सन् १६३८५ में बर्नाड शा से प्रत्यक्ष प्रभावित
भुवनेश्वर के एकांकियों से आधुनिक हिन्दी एकांकी अपने विकसित रूप में
सामने आया । रामकुमार वर्मा, जगदीशचन्द्र माथुर और उपेन्द्रनाथ 'अश्क'
तथा लक्ष्मीनारायण मिश्र ने सम्पूर्ण अभिनेय एकांकी लिखे और अब माना
जा सकता है कि आधुनिक हिन्दी साहित्य में एकांकी भी एक जीवित और
उन्नतिशील साहित्य-प्रकार है। इधर म् र्यतया रेडियो की आवश्यकताओं
को ध्यान में रखते हुए जो गीतिनाट्य लिखे गए, उनमें सुमित्रानन्दन पन्त
के गीतिनाट्य विशेष उल्लेखनीय हैं । वे भी एकांकी की परम्परा को पुष्ट
ही करते हैं।.
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