साम्राज्य, और उनका पतन | Samrajya Aur Unka Patan
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
241
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)साम्राज्यों का निमौण ड्
साम्राज्य-निर्माण चक्रवर्ती राज्य--साम्राज्य जैसी
विशाल संस्था किसी एक यादा बातों से ही नहीं बनती, समय-
समय पर देश कालानुसार भिन्न-भिन्न बातें उसके निमांणमें
सहायक होती हैं । साम्राज्य निर्माण की सबसे पुरानी चचां
हमे भारतीय साहित्य मे मिलतोदहै। वेदों श्रौर शाखो में अश्व-
मेध श्रौर राजसुय यज्ञ, तथा चक्रवर्ती राज्य का विस्तृत वर्णन
है । यज्ञ करने वाला राजां यज्ञ से एक वषं पूवे एक सुन्द्र श्रोर
बलवान घाडा छोड़ देता था । उसके कु सेनिक हाते थे । घाडा
चारों दिशाओं में जहाँ-तहाँ घुमता; यदि कोई इसे पकड़ लता
तो इसका आशय यह होता था कि वह यज्ञ करने वाले को
चुनोती देता है; जब तक वह् उसका न जीत ले, वह यज्ञ करने
का अधिकारी नहीं । यदि कोई घोड़े को न पकड़े तो यह समझता
जाता था कि कोई व्यक्ति यज्ञ करनेवाले की बराबरी का, या
उससे अधिक शक्तिशाली होने का, दावा नहीं करता; सब उस
की श्रधीनता स्वीकार करते हैं। इस प्रकार प्रतिद्वन्द्रियों को
विजय करके, अथवा सब की अधीनता सूचित हो जाने पर,
यज्ञ किया जाता था; उसमें सब अधीन राजा भाग लेते थे, आर
यज्ञ करनेवाले को उपहार या मेंट देते थे । यज्ञ समाप्र होने पर
इसके करानेवाले को (महाराजाधिराजः की उपाधि मिलती थी ।
इस पराक्रमी राजा को ्रपने कृत्य के लिए शाब्लों का श्राधार
प्राप्त था; उनमें लिखा है रि चातुर्मास ८ बषां छतु ) के चन्त में
श्रबीर राजा सेना ले जाकर अन्य देशों को विजय करें और
राजसूय आदि यज्ञ करके चक्रवती बने ।
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