हिंदी के अर्वाचीन रत्न | Hindi Ke Arvachin Ratn

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Book Image : हिंदी के अर्वाचीन रत्न  - Hindi Ke Arvachin Ratn

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भारतेन्दु बाबु हरिदचन्दर ३ भ्रभिनेता भी ये ग्रतः श्रपनी वक्तृताश्रों एवं श्रभिनयों से भी लोगों को शिक्षा देते घे श्रौर सन्मागं का प्रदर्शन करते थे । “अ्रन्धेर नगरी और देवाक्षर चरित्र नाटकों का श्रमिनय उन्होने इसी ध्येयसे किया था। अ्रन्धेर नगरी में लासन की ढील और दुर्नीति का प्रकाशन था श्रोर देवाक्षर चरित्र प° रविदत्त शुक्लं का लिखा एक प्रहसन था जिसमें उर्दू लिपि की गड़बड़ी के बड़े हास्यास्पद हदय थे । भारतेन्दु जी की रचनाओं में हम समसामयिक, सामाजिक, राजनैतिक, धामिक, झ्राथिक, ऐतिहासिक, नैतिक एवं और भी भ्रनेक विषय देखते हैं। वे स्वयं सच्चे देश-प्रेमी, निष्ठावान, ऋजद्धु और चरित्रशील व्यक्ति थे श्रतः उनकी रचनाओं में भी एक सात्विक ऋज़ुता, प्रगाढ़ राष्ट्रीयता, उच्च नेतिकता एवं उच्चाशयता दृष्टिगोचर होती है। उन्होंने २१ काव्य-ग्रंथ लिखे तथा लगभग ६० श्रौर छोटे प्रबन्ध-काव्य एवं मुक्तक कविताएँ लिखीं। उनकी “भारत वीरत्व' एवं 'जातीय संगीत” आदि क्ृतियों में हमें उनका राष्ट्र-प्रेम दिखलाई देता है तथा हिन्दी कौ उन्नति पर व्याख्यान! तथा “उर्दू का स्थापा” आदि में हिन्दी-प्रेम । इनकी भक्ति-सम्बन्धी तो अनेक कविताएँ हैं । कविताओं के अतिरिक्त इन्होंने अनेक नाटक भी लिखे, जिनमें से कुछ तो अश्रनूदित हैं और कुछ मौलिक । ये स्वयं एक प्रसिद्ध श्रभिनेता थे, श्रतः इनके नाटक मध्यम श्रेणी के ग्रच्छे नाटक हैं । इन्होने भ्रनेक इतिहास-सम्बन्धी पुस्तकें भी लिखीं । इन्होंने ऐसी पुस्तकों का निर्माण सं० १६२८ से करना प्रारम्भ किया और उनमें सामयिक घटनाओं पर श्रच्छा और खरा प्रकाश डाला । इनके काव्य-ग्रंथों में भक्ति-विषयक रचनाएँ भी हैं। वास्तव में ये बल्लभीय सम्प्रदाय के थे, श्रतः कृष्णभक्त थे, परन्तु बड़े सरस और सहृदय थे । इन्होंने श्रनेक लेख भी लिखे, जिनमें उपर्युक्त सभी विषयों पर प्रकाश डाला गया है। इनकी विनोदप्रियता एवं व्यंग्य का पूरा आनन्द इनके निबन्धों में ही उठाया जा सकता है । रचनाएँ--- काव्य-प्रंथ-- ' १. भक्त सर्वस्व ५. प्रेम-सरोवर २. प्रेम मालिका ६. प्रेमाश्रु-वर्षण ३. कातिक-स्नान ७. जेन-कुतूहल ४. वंशाख-माहात्म्य ८. प्रेम-माधुरी




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