महादेवभाअीकी डायरी (तीसरा भाग) | Mahadevbhaiki Dayari (Teesra Bhaag)

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Book Image : महादेवभाअीकी डायरी (तीसरा भाग) - Mahadevbhaiki Dayari (Teesra Bhaag)

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about नरहरि भाई परीख - Narhari Bhai Parikh

Add Infomation AboutNarhari Bhai Parikh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
हृदय अपने छोटेसे छोटे साथीके साथ जितनी अकता अनुभव करता था।' जिसीलिओ वे कहते थे कि असलमें यह अपवास मेरे अपने ही विरुद्ध है, आत्म- शुद्धिका महायज्ञ हैं और आत्मशुद्धिमें तमाम साथियोंकी शुद्धि तो आ ही जाती हं। पर भिस अुपवासका ज्यःदा विवेचन यहां मे क्यों करू? भिस अपव।सकी प्रेरणा अन्ह क्योकर हुओी; वह प्रेरणा ओीर्वरी कही जा सकती है या नहीं; सनातनी भिस अपवासको अपने पर अक और बलात्कार कहते थे, परन्तु भिस अषवासमें तो बलात्कारकी गंध तक नहीं थी; केवल शरीरसे भोजन करना बन्द हो जानेसे अपवास नहीं होता, बल्कि असमं मनका भी साथ होना चाहिये, चित्त ओर अ।त्माका शरीरके साथ सहयोग होना चाहिये, भोजनका विचार तक न आना चाहिये ओर अन्तःकरणसे ओवरक साथ अकरूप हो जाना चाहिये; अपवास अक प्रार्थना ही हैँ, और थोड़े- बहुत अनशनके बिना प्रार्थना हो ही नहीं सकती ; --- यह सब गांधीजीने जिस प्रायोपवेशन पर अपने लेखोंमें, जो प्स्तकके दूसरे परिशिष्टमें दिये गये हैं जितनी अच्छी तरह समझाया हैँ कि मुझे पाठकोंसे अस परिशिष्टके पंद्रह पृष्ठोंकी पढ़ने और मनन करनेकी सिफारिश करके रुक जाना चाहिये। दूसरा अपवास राजवन्दीकौ हंसियतसे हरिजनकायं करनेकौ जेसी सुविधाओं अन्हें थीं, वेसी ही सुविधाओं सजा पाये हुं कंदीके रूपमे भी पानेके लिओ था। असमें भी गांधीजीकी दृष्टि सरकारको धमकी देनेकी नहीं थी। गांधीजीने यह अपवास जिसलिओ किया था कि अन्हें सरकारका यह अन्याय बरदाइत करके जीना असंभव मालम होता था कि यरवदा-समझौता स्वीकार करनेके बाद वह गांधीजीके हरिजनकाये करनेमें रुकावट डाले। अंड्रजने अनसे कहा कि राजबन्दीकी हंसियतसे और दूसरे कुछ खास कारणोंसे सरकारने आपको हरिजनकायेकी छूट दी थी, पर सजा पाये हुओ कैदीकी हेसियतसे तो वह नहीं मिल सकती। असके जवाबमें गांधीजी कहते हैं जिसमें धर्ंकी बात न हो तो मे लड़ूं ही नहीं। सजा पाये हुओ कैदीकी हसियतसे यहां लाकर ये सुविधाओं छीन लेना मुझे तो सरकारका दुगुना अन्याय लगता है।” यह और दूसरे तमाम अपवास अन्होने मरनेकी जिच्छासे नहीं, परन्तु जीनेकी जिच्छासे और सेवा करनेकी अधिक योग्यता प्राप्त करनेके लिओ किये हैं। अन्याय और अशूद्धिका अन पर अतना असर होता था और जिनकी वेदना अन्हें जितनी असह्य मालूम होती थी कि असका प्रतिकार किये बिना वे जीवन कायम ही नहीं रख सकते थे। अहिंसक मनृष्यकी हँसियतसे अनके सामने अपने प्रागोंकी बाजी लगाकर प्रतिकार करनेका रास्ता ही खुला रहता था. © 9




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now