रूप और स्वरूप | Roop Aur Svaroop

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Roop Aur Svaroop by घनश्यामदास - Ghanshyamdas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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: २: | लोक और परलोक स्वगे-नरक की यह्‌ परम्परा सदियों से चलो श्रातो है और इसमें दिलचस्प बात तो यह है कि सभी मुल्कों में और सभी मजहबो मं इनका वर्णन करीब-करीब मिलता- जुलता है । मेरा खयाल है कि वेदों में स्वगें का इस तरह का रोचक वर्णन नहीं है और न उपनिषदों में ही स्वगे- नरक का रोचक और भयानक विवरण मिलता है । जो पुण्य करते हैं वे स्वर्ग को जाते हैं, और पापी नरक मे, एसा बताया गया है । परक्यास्वगं का जो वर्णन है वह पुण्यशीलों के लिए आकषक हो सकता है ? इसमें सन्देह है । स्वगे के राजा इन्द्र का तो यह हाल है कि जहां किसीने तप का आरम्भ किया कि उसके दिल में घवराहट पदा हो जाती है । होनी तो चाहिए, देवता को क्या हर पुरुष को, खुशी कि कोई पुण्यशील व्यक्ति शुभ कम में जुटना चाहता है। देवता को तो और भी अधिक खुशी होनी चाहिए। पर इससे उलटा कोई तप करता है तो इन्द्र के घर मानो स्यापा-सा पड़ जाता है। कारण यह माना जाता है कि तप सिद्ध होने पर तपस्वी द्वारां इन्द्र का इन्द्रासन छीन लिये जाने का भय रहता है । पर यदि दो तपस्वी एक ही कोटि के हों तो फिर इन्द्रा




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