अमरबेलि | Amarbeli

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Amarbeli by विश्वनाथ प्रसाद - Vishvnath Prasad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्यासे को पानी ५ : बातें बनाने से कास नहीं चलेगा। मेरे कष्ट कां मूल्य आपको चुकाना ही पड़ेगा ` “किस प्रकार ? : अपनी एक कविता सुनाकर ॥ । में सुनाऊँ ? मेरे मेँह से अच्छी नहीं लगेगी ।' “` काम पूरा भी नहीं हुआ और टाज् मटोल करने लगे ! “नहीं, नहीं, में तैयार हूँ 1?” तो सुनाइए 1 রিও नोटबुक तो दीजिए |! जेब टटोल कर, दीपक जी ने पछतावे के साथ कहा-- “ओह, मैं तो भूल गया | कपड़े पहनते समय उसे जेब में न डाल सका। आज क्षमा करें, कल अवश्य मिल जायगी ॥ आपके साथ चलूँ ?? | भ्मेरे कमरे से अपना माल चरासद करा कर मेरे हाथों में हथ- कड़ी उलवाने के लिये {7 यह प्रश्न सुनकर पांडे जी उदास हो गये ! उन्होंने कोई उत्तर न दिया । दीपक जी ने सुस्कुराते हुए फिर कहा--निराश न हों, पांडे जी, यह्‌ तो एक विनोद्‌ था । आपका हृदय निरछल है। में उसे देख रहा हँ । कभी अपने घेर पर भी आपको ले चर्लुगा.] इस समय तो अपनी एक रचना सुनाइए ! नोटलुक तो है नदी, सुनाऊँ कैसे ? ` ` दीपक जी के आगे यह चालाकी नही चल सकती । प्रत्येकं कवि को अपनी कुछ रचनाएँ अवश्य याद रहती हैं ।?




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