कागज़ की किश्तियाँ | Kagaj Ki Kishtiyan

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Kagaj Ki Kishtiyan by पंडित लक्ष्मी चंद्रजी जैन - Pt. Lakshmi Chandraji Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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यज्ञकी अज्ञलि ऋपषिने और ऋषि-पत्ीने पद्चह दिलतक तत्मय होकर यज्ञ-अनुप्ठान' किया था । आज अनुप्ठायका अच्तिम दिन था और सध्याज्न होते-होतेतक धीरे से हविष्िमाज्षकी अध्यिम आइतिकी थेजा आ गयी थी। सूची भद्धा- को सजीकर गद्गद भावरी ऋपिने अस्तिम अञ्जलि अभिनिभै समपितकरी और, जैसी कि उसकी शाघ थी, शोचा जब अग्विकी अच्तिम पघृत-तृप्त शिखाके साथ भात्मामें परिपूर्ण झानकी ज्योति उदित होगी और साधमाका अच्तिश श्रेय प्राप्त ही जायगा ! किन्यु अभिग जअज्जलिसेंस मे हविष्थान्न नीचे सरका, गे कोई ज्योति प्रगठ हुई---उल्टा पह हुआ कि ऋति-दस्पतिकौ আঁতাত धुओँ भरमें लगा, आंधु घूने लगे । यह क्या? ऋषिम वीनि वार अिषाशत की आधवागिकाएँ | ११




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