सत्यामृत | Satyamrat
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
236
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about दरवारीलाल सत्यभक्त - Darvarilal Satyabhakt
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सत्यन्धष्ट
নন ললীল্লতি্লীঁঁলঁীলু
দহ यह् पिद्ध करने की फोशिश का ই कि
यह सब दमोरे घर की चोरी है. । अमुक दशके
वैज्ञानिक छोक जो आशिष्कार कश्ते हैं बढ सब
हमर प्रो में छिखा दै उन्हें पढकर उन गो ने
श्विष्कार फर छिये हैं | व यह नहीं सोचते
कि शर्ताम्दियें। से जिन ग्रथों को सुम पद रहे हो
उनें। तुम्दें आज सक् भिन आविष्कारों की মল
तकन आई ঈ दूसरों को यहां कडां से मिछ गये ?
ऐसे लोगों के अगर यद्ध मानना पड कि नहीं
यह सब तुम्हारे प्रयों में नहीं हैं. तो वे उस सत्य
को मानना अकार कर देंगे इस प्रकार यह
स्वत्ष-मोह सम्य-ठदन में बाघक होजायगा |
कुछ लोग হা জন্দ-মীহ दुक दुसरे तरह
क हष्दो से प्रण्ट षमा करता है । मरे का कए
हैं. विज्ञान की सब खोजे हमारी मान्यताआ का
समन फरती हैं। यह स्थामाविक-है कि विशेष
अविष्कार सामान्य मापत्ता का समयन को पर
बह सैक्णों श्रमों कम उप्डेटन भी करता है ।
सखष्र-मोही उष्छद्न फी यात पर तो ध्यान नहीं
शेता आर एकाध सामान्य লাল শা पका कर
यह अपने गीत गाने छगता है | उसे सत्प से
प्रेम था मक्ति नहीं द्वोती फिल्तु अपनी यस्तु फ
मोह होता है जौकि एक तरह से अहकार का
परिणाम कद्घा जा सफ्ता है। बह सत्यको सत्य,
समझ कर नहीं, मुनता किन्तु अपना समर्थक
समम कर मानता हू । अग अपना समयक नही
हतौ षह मानने क्रे कषपार् नटी है । अपने प्रय
सम्प्रटाय, मत भादि या मोह भी ख्य-मोहदहै
जो कि सन््प-ददन में ग्राधक है । सहुत में परित
अप पे मान शर्ते है फिर फोप आर स्याकरण
थय दश्वमर् घना ग्रना याए छाग्दों से इष्स्ति अथ
गीचत रहते हैं। फोन मी वाक्य बे प्रिसीन
[७
किसी तरह से अपनी यात सिद्ध करना चाहते
हैं ।इसाछिये अवसर के बिना द्वी अलकार, पएकाक्षरी-
कोप आदि का उपयोग कस्ते है ओर् सीधे
तया प्रकरण सगत अभ फो छाडकर कुट्लि भ
निकाछा करते हैं। यह मतमोह भी অন্মদীহ है ।
नहुत से छोग तो सिर्प इसीलिये किसी सत्य
को अपनोन को तैयार नहीं होते कि मद हमोरे
नाम का नहीं है. । सस्यसमाज के सिद्धान्तों को
जान कर बहुस छोगों ने उन्हें माना पर थे इसी
डिये प्रगट में समर्थन न कर सके, न उसके
प्रचार में सदायता कर सके कि ये सिद्धान्त उनके
सम्प्रदाय के नाम पर न के गये थे । मे अपने
सम्प्रदाय के नाम पर कुछ दोषों को भी सहलेने
क्ये तैयार थे परन््तु अगर उनके नाम की छाप
न दो ते| वे परम सत्य से मी छणा या उपेक्षा
करने को सैयार थे । ऐसे छोग सत्य की खोज
नहं कर सने । सत्य के खाजी पये स्यच मोह
जिसे नाम-मोह भी कहां जा सकता दै-से दृर
रहना चाहिये । इस प्रकार दोनों प्रकार के मेषो
का त्याग करने से मनुष्य में निष्पक्षता पैदा होती
है। मगशन सस्य के दर्शन क ल्थि नि पक्षता
एक आवश्यय गुण ह ।
२ परीक्षकता
मगयान सत्य के टीन की योग्पता के छियि
दूसरा आबश्पक गुण परीक्षकसा दै । जो आदमी
परीक्षक नष है सह सय पैः टन नही पष
सकता | बह फिसी बात फो माने या न माने
उसके मत यम युछ मृल्य नहीं है | तुम यह क्यो
मानते हो ? क्योंकि हमोरें वाप मानते थे इम
उत्तर में फ् जान नहीं है | बाप की मायता
से ही किमी बात को मानने में मनुष्य हाने प्र
কাশ
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