सत्यामृत | Satyamrat

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Satyamrat by दरवारीलाल सत्यभक्त - Darvarilal Satyabhakt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सत्यन्धष्ट নন ললীল্লতি্লীঁঁলঁীলু দহ यह्‌ पिद्ध करने की फोशिश का ই कि यह सब दमोरे घर की चोरी है. । अमुक दशके वैज्ञानिक छोक जो आशिष्कार कश्ते हैं बढ सब हमर प्रो में छिखा दै उन्हें पढकर उन गो ने श्विष्कार फर छिये हैं | व यह नहीं सोचते कि शर्ताम्दियें। से जिन ग्रथों को सुम पद रहे हो उनें। तुम्दें आज सक् भिन आविष्कारों की মল तकन आई ঈ दूसरों को यहां कडां से मिछ गये ? ऐसे लोगों के अगर यद्ध मानना पड कि नहीं यह सब तुम्हारे प्रयों में नहीं हैं. तो वे उस सत्य को मानना अकार कर देंगे इस प्रकार यह स्वत्ष-मोह सम्य-ठदन में बाघक होजायगा | कुछ लोग হা জন্দ-মীহ दुक दुसरे तरह क हष्दो से प्रण्ट षमा करता है । मरे का कए हैं. विज्ञान की सब खोजे हमारी मान्यताआ का समन फरती हैं। यह स्थामाविक-है कि विशेष अविष्कार सामान्य मापत्ता का समयन को पर बह सैक्णों श्रमों कम उप्डेटन भी करता है । सखष्र-मोही उष्छद्न फी यात पर तो ध्यान नहीं शेता आर एकाध सामान्य লাল শা पका कर यह अपने गीत गाने छगता है | उसे सत्प से प्रेम था मक्ति नहीं द्वोती फिल्तु अपनी यस्तु फ मोह होता है जौकि एक तरह से अहकार का परिणाम कद्घा जा सफ्ता है। बह सत्यको सत्य, समझ कर नहीं, मुनता किन्तु अपना समर्थक समम कर मानता हू । अग अपना समयक नही हतौ षह मानने क्रे कषपार्‌ नटी है । अपने प्रय सम्प्रटाय, मत भादि या मोह भी ख्य-मोहदहै जो कि सन्‍्प-ददन में ग्राधक है । सहुत में परित अप पे मान शर्ते है फिर फोप आर स्याकरण थय दश्वमर्‌ घना ग्रना याए छाग्दों से इष्स्ति अथ गीचत रहते हैं। फोन मी वाक्य बे प्रिसीन [७ किसी तरह से अपनी यात सिद्ध करना चाहते हैं ।इसाछिये अवसर के बिना द्वी अलकार, पएकाक्षरी- कोप आदि का उपयोग कस्ते है ओर्‌ सीधे तया प्रकरण सगत अभ फो छाडकर कुट्लि भ निकाछा करते हैं। यह मतमोह भी অন্মদীহ है । नहुत से छोग तो सिर्प इसीलिये किसी सत्य को अपनोन को तैयार नहीं होते कि मद हमोरे नाम का नहीं है. । सस्यसमाज के सिद्धान्तों को जान कर बहुस छोगों ने उन्हें माना पर थे इसी डिये प्रगट में समर्थन न कर सके, न उसके प्रचार में सदायता कर सके कि ये सिद्धान्त उनके सम्प्रदाय के नाम पर न के गये थे । मे अपने सम्प्रदाय के नाम पर कुछ दोषों को भी सहलेने क्ये तैयार थे परन्‍्तु अगर उनके नाम की छाप न दो ते| वे परम सत्य से मी छणा या उपेक्षा करने को सैयार थे । ऐसे छोग सत्य की खोज नहं कर सने । सत्य के खाजी पये स्यच मोह जिसे नाम-मोह भी कहां जा सकता दै-से दृर रहना चाहिये । इस प्रकार दोनों प्रकार के मेषो का त्याग करने से मनुष्य में निष्पक्षता पैदा होती है। मगशन सस्य के दर्शन क ल्थि नि पक्षता एक आवश्यय गुण ह । २ परीक्षकता मगयान सत्य के टीन की योग्पता के छियि दूसरा आबश्पक गुण परीक्षकसा दै । जो आदमी परीक्षक नष है सह सय पैः टन नही पष सकता | बह फिसी बात फो माने या न माने उसके मत यम युछ मृल्य नहीं है | तुम यह क्यो मानते हो ? क्योंकि हमोरें वाप मानते थे इम उत्तर में फ् जान नहीं है | बाप की मायता से ही किमी बात को मानने में मनुष्य हाने प्र কাশ




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