नल नरेश | Nal Naresh

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Nal Naresh by अयोध्या सिंह उपाध्याय - Ayodhya Singh Upadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ११ ) हुई है। राजदरवार में रहने के कारण उस्तको राजसी ठाठ-बाट का अच्छा ज्ञान है। अतएव स्थढू-स्थल पर इस विपय का भी सु दर विकास देखा जाता है । मै पयो को उद्‌ शृत करके अपने कथन की पुष्टि कर सकता था, परतु स्थान की न्यूनता ओर अस््स्यता इस काय॑ फी वाधक हू | प्रथ के दोपो का प्रदर्शन मुझे इं्ट नहीं | कारण, वे ही दोष प्रथमे पाए जाते हैं, जिनका प्रचार आजकल खड़ी बोली की रचनाओ मे अधिकतर सतंत्रता-यूवक हो रहा है | आज- कल मुहावरों का गढ़ छेना, मनमाना शब्द-विन्यास करना, इच्छानुसार विभक्तियों का छोप कर देना, अस्पष्ट माव ओर भाषा का प्रयोग करना वाए' हाथ का खेछ है | इस प्रकार का व्यवहार नियमबद्भता की कठोरता से खतत्रता ग्रहण का सर्वोत्तम उपाय समझा जाने छगा है। मनमाना पुछिंग शब्दों को ख्रीलिंग लिखना, व्याकरण-दुष्ट शब्दों का निस्सफ्रोच प्रयोग करना, भाषा के प्रवाह ओर वोठचाछ के नियमो पर दृष्टि न रखना, इन दिनो परपरा की श्र खखघो के तोडने का सहुपाय माना जाता है } या इस बहाने अपने दोषो प्र परदा उद्य जाता है | खेद है, आजकछ बु सुणेम्य आलोचक भी ऽस विपय मे मौन ग्रहण करना ही उत्तम समझते है| अब कुछ छोग बजभापा के शब्दों का प्रयोग भी अनवप्तर करते देखे जाते है, फिर भी उनको सावधान करनेवाले सावधान नहीं झरते। जब हिंदी-साहित्य-््षेत्र की यह अबस्था है, तब प्रथकार को




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