महाप्रयाण | Mahaprayan

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भगवती प्रसाद पांथरी - Bhagwati Prasad Panthari

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मनोहरलाल - Manoharlal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बापू चले गये बापू चले गये ! किसी को विश्वास न द्वोता था। रेडियो ओर अखबार की खबरों को सुनकर ओर पढ़कर हृदय जम गया। आखे पथरा गई ओर आत्मा से शून्यता व्याप्त हो गईं थी-लेकिन जो होना था सो हो चुका था | निरभ्र आकाश से विजली असभव हे लेकिन गिर चुकी थी, ओर सतप्त हृदय से दुनिया ने अखबारों मे छपे नई दिल्ली से प्रेषित इस समाचार को पढ़ा-- नये! दिल्ली ३० जनवरी \ जब वे शामको विड़छा भवन में प्राथना के मैदान की तरफ जा रहे थे तो किसी ने उन पर चार वार गोली चलायी | वे सख्त घायल हुए | डाक्टर तुरंत बुलाये गये । गांधीजी ५ बजकर ५ मिनटपर विड़लछा भवनसे बाहर निकले ओर अपनी दो पोत्रियोंके कन्धोंऊे सहारे प्रार्थना की जगह पेदुल जाने लगे । ज्योंही वे मचके पास आये भीड़ दो दिस्सोमि छट गयी ताकि गाधीजी वीचसे होकर निकल जाय | भीड़मे से एक आदमीने, जो ३०-३५ की अवस्थाका था और साकी वर्दी पहने था, गान्धीजीके पास आते ही करीब २ गजके फासले परसे उनपर रिधाल्वरसे ४ गोलियां चलायों। गाधीजीऊे पेटमे गोली छगी और वे उसी दम गिर पढ़े । उनको पौत्रियों आभा गावी ओर मनु गावीने उनको पकड़ लिया ओर रोने छगीं। यह सच उतनी जल्दी हुआ कि भीइमे किसीको पता ही नहीं चला कि क्या हुआ । भीडम से ऊुछ लोग दृत्यारेपर टूट पड ओर उसे पकड़ छिया। भोड़म से कुछ तो आतफिन हाजर चेतहाशा भागने छंगे ओर बाकी लोग उधर श्वपटे जद्दा गाधीजी पर गाडी चलायी गयी थी । १४4 3




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