कवि प्रसाद एक अध्ययन | Kavi Prasad Ek Adhyayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
264
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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भूमिका ; 'छायावाद? ह
हीं नहीं । ायावाद की कविता ने इसी परंपरागत. ङ्गार भावना
के प्रति विद्रोह किया है | `
(४) छायाबाद की कविता मे लापरिकता की प्रधानता है!
इसे शैली की विशिष्टता कहना ही ठीक होगा, इसके रूप कई हैं।
कहीं तो अन्योक्ति और वक्रोक्ति का आश्रय लिया गया है, कहाँ
अलंकारो के वक्र, लाजुणिक और अंग्रेजी ढंग के प्रयोग मिलते
है, कही प्रतीको का प्रयोग है । इम भसबने एक स्थान पर मिल
कर नए पाठक के लिये श्रिते ही स्थानो पर जैसे कूट-कान्य की
सृष्टि कर दी है | इनमे सबसे अधिक कठिनता प्रतीको के संबंध
मे है। प्रसादः ने कहा--“आल्ंबन के प्रतीक उन्हीं के लिये
अस्पष्ट होगे जिन्होने यह नदीं समा है कि रहस्यमयी अनुभूत्ति
युग के अनुसार अपने लिये विभिन्न आधार चुनती है |” परंतु ये
प्रतीक इतनी अस्पष्टता, शीघ्रता और अनिश्चतता के साथ
पाठक के सामने आये कि वह उसे पकड़ ही नहीं सका ।
(४) छायाबाद काव्य से “विश्व-सुदंरी प्रकृति मे चेतनता
का आरोप प्रचुरता से उपलब्ध होता ह । यह प्रकृति अथवा शक्ति
का रहस्यवाद् है ।› इसके अतिरिक्त प्रकृति और मनुष्य मे रागा-
त्मक संबंध इसी प्रकार के काव्य में पहली बार सामने आता है।
(६) जीवन के प्रति दृष्टिकोण दुःख और निराशापूर्ण है।
सारा छायावाद काव्य ही (“प्रसाद! और “निराला के कुछ काव्य
को छोड़ कर) दुःख-प्रधान है। यह दु.ख कहीं आध्यात्मिक है,
कही लौकिक | अधिकांश से इसका संबंध व्यक्तिगत असफलताओ
से है जिन्होने धीरे-धीरे दुःख का एक दर्शन दी दे दिया हैःजिसका
आधारः अद्रौत दशेन पर ही रखा गया है । कितने दी कवियो ते
दुःख की साधना को ही काञ्य की श्रेष्ठतम कला मान लिया है ।
(७) हम यह सान लेने के लिये तैयार हैं कि छायावाद
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