मूल में भूल | Mool Me Bhool
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.54 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
पं. पर्मेष्ठिदास जैन - Pt. Parmeshthidas Jain
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श्री कानजी स्वामी - Shree Kanji Swami
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हैरद्दा ३ पर प्रवचन [१५]
अर्थ :--उपादान अपनी निज की धक्ति है वह जीव का
मूल स्वभाव है और पर संयेग निमित्त है उनका संबंध
अनादिकाल से बना हुआ है ।
यददां पर कद गया है कि जीप का मूड समात्र उपादान
है क्पोंकि यहांपर जीर की सुक्तिफ़ी ही बात छेपी है इपलिपे
यड बताया है कि जीप की मुक्ते में उपादान क्या है और
निमित्त कया है जीय का मूल स्त्रमाथ्र उपादान के रूप में
छिया यग है । यद्दां पर सपत्त द्रव्यें की सामान्य बात नहीं
है किंतु विशेष जीय द्रव्यकों सुक्तिही ही बात है' ।
जीवकी पूर्ण शक्ति उपादान है यदि उपको पहचान करे
ते सम्पग्द्शन ज्ञान चारित्रहप उपादान कारण प्रगठ हे और
सुक्ति अ्रप्त दे । जीत का मूठ स्वभगव ही मुक्त प्राप्त करना है
चद्द अतरमें दे, अतरंगकी दक्ति में से मुक्ति प्रगट दाती हैं,
किसी देव गुरु शास्त्र चाणी अथत्रा मनुष्य शरीर इश्यादि पएको
सद्दायता से जीत की मुक्ति नहीं देती ।
प्रदन--जा सच्चे शुरु दते हैं वे भूठें हुओं के मार्ग
ता बताते ही हैं इप्नछिये उनकी इतनी सहायता ते मानी ही
जायगी
उतर--जा भूढा हुआ है वह पूछकर निद्चय करता है:
सा किम्न के ज्ञान से निश्चय करता है । भरूढे हुये के ज्ञान
से अथत्रा गुरु के ज्ञान से ? गुर कड़ों किप्ती के ज्ञान, में
निरचय नहीं करा देते फिन्ु जीव सत्य अपने ज्ञान में निदचय
करता है' इसलिये जा समझता है बंद अपनी ही उपादान शक्ति
से समझता हे । .
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