आठ सेर चांवल | Aath Ser Chanwal

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Aath Ser Chanwal by के. संतनाम - K. Santnam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४ ) हे; उसके वच्चे भो उसे कोई भारी बो न मालूम पडेगे। ओर चूँकि बह हमारे करीब ही रहेगी, हम भी उसकी मदद करते रहेगे। उसके भाई-बहनों को भी बड़ी सहायता मिलती रहेगी । इस तक का उसकी पत्नी पर प्रभाव पड़ा ओर कोई सीधा स्पष्ट उत्तर न देकर वह बोली--“जो कुछ भी दहो, मेरी जिम्मेदारी तुम से ज्यादा तो नहीं है; लेकिन अभी मेरे दिल को तुम्हारा यह विचार अच्छा नहीं लगता । हम लोग इस मामले को जल्दी मेन तय कर, इसमें कुछ रुकना ठीक होगा ।” दोनों मोन घर लौट श्राए । सुलक्षणा ने अपने सोने के कमरे की सब खिड़कियाँ बन्द कर लीं। उसे चार्‌-चन्दरिका से अचानक घृणा हो गई थी। दक दूसरे दिन तीसरे पहर जव मॉँ-बेटी अकेली थीं तब दयामयी ने पूछा--“माँ ! क्‍या पिताजी मुझ से नाराज हैं ? कल रात उन्होंने मुझे तुम्हारे साथ ले चलने से क्‍यों इन्कार कर दिया ?” माँ ने जवाब दिया--“तू कैसी पगली लड़की है ! क्या तेरे पिताजी तुभ से कभी नाराज हए हैं? वे मुझ से एकान्त में कुछ सलाह करना चाहते थे; इसीलिए तुमे साथ नहीं ले गए ।” “क्या कोई ऐसी बात थी जो मुझे न जाननी चाहिए ?”-दया ने जिज्ञासा को ।




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