इस जगत की पहेली | The Riddle of This World

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The Riddle of This World by श्री अरविन्द - Shri Arvind

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महत्तर सत्य उन्होने व्यक्तिगत सूपत्ते विज्ञानमय लोकम पटुचनेकी चेष्टा की पर उसे उन्होंने नीचे नहीं उतारा न उसे पाथिव चेतन्यका स्थायी माग दही बनाया। उपनिषदोंमें कुछ ऐसे मन्त्र हैं जिनमें यह संकेत किया गया है कि इस पाथिव शरीरकों रखते हुए सूर्य-( विज्ञानके प्रतीक ) मण्डलकों भेदकर जाना असम्मव है। इस विफलताके कारण ही भारतका आध्या- त्मिक प्रयात मायावादमें पयंवसित हुआ | हमारा योग आरोहण और अवतरणकी द्विविध गतिवात्य है; इसमें साधक चेतन्यके क्रमशः उच्चतर स्तरोपर आरोहण करता टैः पर साथ ही वह उन लोकोंकी शक्तिको नीचे केवल मन और प्राणमें ही नहीं, बल्कि अन्तमें शरीरमें मी उतार लाता है । इन स्तरोंमें सर्वोच्च स्तर विज्ञान है ओर वही इस योगका लक्ष्य है। उसका जब अवतरण हो सकेगा तभी पार्थिव चेतन्यका दिव्य रूपान्तर सम्भावित होगा । ४ मई १९३० --~>69=>-- | ই]




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