बंकिम निबंधावली | Bankim Nibandhaavalii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
205
श्रेणी :
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No Information available about बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय - BANKIM CHANDRA CHATTOPAADHYAY
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धमे ओर साहित्य ।
सकता। वह क्षणिक और अत्यन्त क्षुद्ध अपराधके लिए मलुष्यको चिर-
स्थायी दण्ड देता है। छोटे बड़े सभी पापोंके लिए अनन्त नरककी व्यवस्था
करता है। निष्पाप पुरुष भी, अगर वह ईसाई न हो तो उसके लिए अनन्त नरक-
मोगका विधान है। जिसने कभी इंसाका नाम नहीं सुना, इसी कारण
इंसाईं होना जिसके लिए असम्भव है, उसे भी उसी अपराधके लिए
अनन्त नरक भोगना पड़ेगा। जो हिन्दूके घर पेदा हुआ है उसका हिन्दूके
घर पेदा होनेमें कुछ भी दोष नहीं है। ईश्वरने उसे जहाँ भेजा वहीं वह
आया। इसमें अगर कुछ दोष है तो वह दैश्वरका है। तथापि उस दोषके
लिए उस गरीबको अनन्त नरक भोगना पड़ेगा। जो ईसाके पहले पेदा
हुआ था और इसी कारण ईसाईंधमंको नहीं रहण कर सका, उसे भी
ईंश्वरक्ृत जन्म-दोषके लिए. अनन्त नरक भोगना पड़ेगा। इस इंसाइयोंके
अत्याचारी परमेश्वरका एक काम यही है कि वह दिन-रात सब लोगोंके
हृदयमें झाँक झाँक कर देखा करता है कि किसने कब क्या पाप-संकल्प
किया। जिसमें जरा भी पापन्संकल्प देख पाया, उसके लिए उसी दम
अनन्त नरककी व्यवस्था कर दी। जो छोग इस धर्मके चक्करमें पड़े हैं, वे
सदा उसी भारी विषादके भयसे सटपटाये रहते हैं और जीवन्त अव-
स्थामें अपना जीवन बिताते , हैं। प्थिवीका कोई भी सुख उनके लिए
सुख नहीं है। ऐसी दशामें जिन लोगोंने इस धर्मको धर्म कहना सीखा है,
उन्हें धर्मके नामसे बुखार चढ़ आना सर्वथा संगत है।
साधारण धर्मन्रचारकोके इन दोषोसे ही धमेकी आखोचनासे सवं साधा-
रण रोग इतने विमुख देख पडते है--बे उस ओर अपनी ेसी अरुचि
दिखाते ह । नहीं तो धर्मकी मूर्ति ऐसी मनोहर है कि सब छोड़कर धर्मकी
आलोचनामें ही छोगोंको अधिक अनुराग होना चाहिए। मुझे विश्वास है
कि जगतमें छोग धर्मको मनोहर और प्रिय ही समझते हैं। केवल यहाँके ही
रुचिविकार-ग्रस्त पाठकोंमें यह बात नहीं- पाई जाती। वे अगर विचार
करके देखें तो उन्हें देख पड़ेगा कि हिन्दू और इंसाइयोंके दोषसे जो
धर्मकी विक्ृत मूर्ति उन्होंने देखी है वह धर्म नहीं, अधर्म हैं । धर्मकी
मूर्ति बहुत ही मनोहर है। ईश्वर प्रजाको पीड़ा नहीं पहुँचाता। वह
डरे
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