योगके आधार | Yogke Adhar

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Yogke Adhar by श्रीअरविन्द - ShreeArvind

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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योगके आधार हो, उत्फुल हो और प्रसन्न हो, जिससे वह अपने- आपको उस शाक्तिके सामने खोल सके जो प्रक्ृतिका रूपान्तर करेगी । आवश्यक बात यह है कि अशान्त विचारों, अशुद्ध चित्तवृत्तियों, भावनाओंकी उलझनों तथा अन्य अमंगल गतियोंके मनपर निरन्तर आक्र- मण करते रहनेकी आदतसे छुटकारा पाया जाय । ये हैं जो हमारी प्रकृति को क्षुब्ध करते, उसे आच्छन्न करते ओर दिव्यशक्तिके लिये काम करना कठिन बना देते हैं। जब मन स्थिर ओर्‌ शान्त हो जाता है तब शक्ति अपना काम अधिक सुगमतासे कर सकती है। तुम्हारे लिये यह संभव होना चाहिये कि तुम उन बातोंको, जिनका परिवत्तेन करना तुममें आवश्यक है, बिना घबराये या मुरझाये हुए देख सको, ऐसा करनेसे परिवत्तेन अधिक सुगमतासे हो जाता है । ५ नै कैः शून्य मन ओर स्थिर मनमें भेद यह है कि, मन जब शून्य होता है तो उसमें कोई विचार नहीं रहता, कोई धारणा नही होती, किसी प्रकारका भी मानसिक काये. ४ |




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