स्वतंत्रता और संस्कृति | Swatantrta Aur Sanskriti

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Swatantrta Aur Sanskriti by डॉ सर्वपल्ली राधाकृष्णन - Dr. Sarvpalli Radhakrishnan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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विश्वविद्यालय तथा राष्ट्रीय जोवन ११ श्रपने ही सिद्धान्त सवंभान्य समभे जाएं। सर्वमान्यता का पुजारी श्रपनी इष्टसिद्धि के लिए सब कुष्टं कर सकता हं - मागे मे पड़ने वाली किसी बाधा को, किसी श्रवरोध को, वहु रहने नहीं देता। ग्रावेश में आने पर वह अत्याचार एवं हिस्मा की भी सहायता लेता हैं। किसी भी महती जाति के सभी व्यक्तियों को एक ही सांचे में ढालना तथा उन्हें एक ही केन्द्रीय शक्ति भ्रथवा साम्प्रदायिक मत में ग्रन्धविश्वासी बनाना 'प्रशा' की पद्धति कही जाती है। पर 'সহা- निवासियों को ही वह कुछ बपौती नहीं है। सर्वेमान्यता निरंकुश दासकों का स्वप्त--उनका शासन-क्षेत्र चाहे राजनीतिक हो चाहे धामिक---सदा ही रहा हैँ। विश्वविद्यालय का आदश मानसिक না बौद्धिक स्वातंत्रय हैं। उसकी ममता न तो विशेषा धिका रो की रक्षा में है औ॥ौर न किसी सिद्धान्त-विशेष को सवेमान्य बनाने में। वह तो उन सभी विशेषाधिकारों का विरोधो हुँ जो बौद्धिक उच्चता ग्रथवा आध्यात्मिक महत्ता से दूर हैं । वह सर्वमान्यता का भी विरोध करता है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति को अधिकार हैँ कि वह श्रपने विचारों तथा सिद्धान्तों को स्वतंत्रतापूवंक विकसित करे। विचार- शील व्यक्तियों का समाज होने के कारण विश्वविद्यालय स्वतंत्रता का मन्दिर है। उस मनोवृत्ति की शवित एवं सत्ता, जो स्वतंत्रता की बाधक तथा विशेषाधिकार प्रथवा सवेमान्यता कौ साधक है, धामिक तथा साम्प्रदायिक कटुरता कौ पोषक हं । विरवविद्यालय का कत्तंग्य हैँ कि ऐसी मनोवृत्ति का दमन करे तथा अपने युग के विचार एवं स्वभाव को एक नवीन रूप दे। मानवता का इतिहास दो प्रमुख मूल प्रवृत्तियों के निरन्तर संघर्ष का इतिहास है, रक्षणवृत्ति तथा विकास ললি। रक्षणवृत्ति हमारे




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