प्राचीन भारतीय परम्परा और इतिहास | Pracheen Bhartiya Parampara Aur Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ख प्राचीन भारतीय परम्परा ओर इतिहास हो गये तो उनका रहन-सहन बदर गया ओर वे भी उसी शुण्ड के लोग दिखाई देने लगे । तो इसी तरह द्रविड़ आये और यहाँ के मूल निवासियों से मिल गये । मूल निवासी से भ्रम न हो । अर्थ है जो यहाँ रहते थे, चाहे वे भी बाहर के ही हों या यहीं से बाहर फंल गये हों । इनमें यक्ष, राक्षस, गंधवं, किन्नर आदि जातियों का दशन होता ह । यह जातिया अलग-अलग सामाजिक स्तरों पर रहती थी । बहुत सी टाटम और टेब्‌ जातियाँ भी मिलती हैं । टाटेम और टंबू का भेद समझ लेना ठीक होगा । मुसलमान सूअर से चिढ़ते हैँ, उनके लिये सूअर নু ই। লিজ लोग सुअर को हड्डी से अपने भोजन को पवित्र करते हें । इनके लिये सुअर एक पृज्य वस्तु का रूपान्तर हे। इसी तरह प्राचीन काल ही नहीं, दक्षिण भारत में अभी भी अनेक जातियाँ हैं जिनका नाम ही जन्‍्तु विशेष का नाम हैँ जिसकी वे उपासना करते हे। गरुड ओर नाग ऐसी ही जातियाँ थीं। यदि पशु-पक्षी विशेष परस्पर शत्रु होते थे, जातियाँ भी एक दूसरे से शत्रुता निभाती थीं । यह द्रविड़, यक्ष, गंधव तथा अन्य जातियाँ विभिन्न सामाजिक व्यवस्था के स्तरों में थीं। उस समय आये आये । जो मेने द्वविड़ों के बारे में कहा हैं आर्य जाति के विषय में भी वही लागू होता है । इन आर्यो के सम्बन्ध मे काफी मतभेद हं । मेरा विचार ह कि प्रारम्भिक आर्यं कबीलों मे आदिम साम्यवाद था । वह॒ बात कितनी अधिक प्राचीन थी, यह मेने पुस्तक मे बताया हँ । फिर आदिम साम्यवाद बदल । मातुसत्ता की जगह पितृसत्तात्मक व्यवस्था ने ले ली। क्यों ली ? क्योंकि प्रारंभिक जंगलियों ( 92४2९९८ ) पर आर्येतर जातियों का प्रभाव पड़ा, ओर गणो पर अर्थात्‌ गोत्र गणो में इनकी नई व्यवस्था बनने लगी । यह समय देव युग का हं । संस्कृत वाके आयं जो वेदिक भाषा के प्रवत्तंक थे उन्हीं को मेने देव कहा है । देवों का असुरो से युद्ध हुआ। वे असुर हारे । पर उनकी परम्परा को भी पारसीकों ने याद रखा । जसे हम असुरो को बुरा कहते हं, अयरान (ईरान का पुराना লাল) में देव का अथं उतना ही बुरा माना जाता था। | देवों ने धीरे-धीरे खेती-बाड़ी सीखी और उनमें दास-प्रथा प्रारंभ हुई। यह ऋग्वेद से भी पुरानी बात है। यहाँ जो भारत में ग्राम थे उनमें अपनी ही दासप्रथा जाति-भेद के रूप में थी। देवों को वही मिली । « महाप्रल्य ने देव जाति को नष्ट कर दिया। अर्थात्‌ आर्यो के कबीलो मे जो शेष रहे, अब सामाजिक व्यवस्था बदर गई ओर वे मनु की संतान, मनु के कबीले कहलाने लगे। यह मन्‌ की खुतान कंसे भारत में बढ़ी वह यहाँ हमारा वण्यं-विषय हे। वह इतिहास का अगला पग हैें। ३५०० ई० पू० के बाद का इतिहास है जो महाभारत युद्ध के समीप अर्थात्‌ लगभग १६०० ई० पू० तक जाकर समाप्त होता हं । आरयों से पुराना समाज अलग-अलग स्थानों पर अलग-अलग समाज-व्यवस्था में




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