भारतीय वीरांगना द्वितीय भाग | Bhartiya Veeragana Dvitiya Bhaag

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Bhartiya Veeradrana Dvitiya Bhaag by महालचंद वयेद - Mahalachand Vayed

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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, सती पर्न £ ये। सात सौ डोडियों ঈ वयाठीस सौ राजपूत बीर चठे 1 सव से भगे की सुन्दर पाकी मे स्वयं महारानी पश्चिनी थीं। उस पालकी के दोनों ओर गोरा और बादछ--चेचा-भंतीजा-- धोड़ों पर सवार होकर चल रहे ये । यह भी कहा जाता है कि स्वयं रानी पक्षिनी नहीं ग़यी थीं:। पक्षिनी की पाठकी में तमाम औजारों को ढेकर एक छोहार बैठ गया था, जो रतरसिह फो कैद से मुक्त करने के लिये था। रानी राजमहर के मरोखे पर वैठी परमात्मा से अपने प्राणाधार के श्राणों की भिक्ञा माँग रही थी। गोरा और वादछ की कूटनीति से किसी को पता तक न छग पाया कि पद्चिनी की पालकी मे वह नहीं; एक छोहार है। कविवर जायसी ने इस दृश्य का बहुत सजीव वणेन क्रिया है! धट छोद्दार न जाने भानू! राजपूतों ने अपने राजा को कैद से छुड़ा लिया; दोनों ओर के सिपाहियों और सैनिकों ने विकट मार-काट की | भद अग्या सुछतानी, बेगि करहु यहि हाथ । रतन जात है आगे, लिये पदारथ साथ ॥ - धीरवर गोरा ने इस रट में वीरता से लड़ते हुए वीर-गति- प्राप्त की। अछाउद्दीन के पैर उड़ गये। रज्नसिद सकुशकू किले मे पहुँच गये । अछाउद्दीन को अपनी इस पराजय का वड़ा खेद था। कई वयो के वाद्‌ उसने प्रचण्ड सेना को साथ ठेकर पुन्‌ चिन्तौड पर चढ़ाई की। पिछले युद्ध से वचे-खुचे मरणोन्मत्त वीर राजपूत




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