अहिंसा - दर्शन | Ahinsa Darashan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
359
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १४)
के दो प्रकार गृहस्य की श्रहिसा मर्वादा-हिसा शब्द व्यापक श्रथ
में-“अहिंसा का विराट रूप--जैन शासन में अहिसा का स्थान
एष्ट १२४-१४०
४--६हिंसा और अ््दिसा : एक अध्ययन
हिंसा का कारण - परधात बनाम आत्मधात--जीवदया बनाम
आत्म दया - हिंसा अहिसा का निर्णायक तत्व भाव--हिसा का फल--
हिसा का प्रयोजन--हिंसा क्यों त्याज्य है --श्रहिसा का স্সাপাহ सर्वसत्व
समभाव है--श्रहिसा के लिये हिसा का त्याग एक ग्रावश्यक शर्त है--
हिंसा के व्याग के लिये हिसा के साधर्नो का त्याग श्रावश्यक है-हिसा
दिख जीयो की सख्या पर निर्भर नहीं है--अहिसा के सम्बन्ध में कुछ
आन्त धारणाये-व्यावहारिक जीवन और निश्चय मार्ग--एक ग्रश्च--
धर्म के नाम पर हिंसा की मान्यता--दुखी जीवों का वध--सुखी जीवो
का घात-स्वर्ग की आशा में श्रात्मपात --हिंस और हानिकर जीवों
का वध पष्ठ १४१-१६६
४--अहिंसा और ब्रत विधान
सारा ब्रत विधान अहिसा का साधक और पोषक है--पापों का
आकर्षण और उसका प्रतिरोध-मनुष्यो के चार प्रकार--श्राचार के
दो मेंद--अशुक्रत और महाबरत -अ्त आत्म विजय की साधना है---
नैतिकता के अभाव से युद्ध और शोषण का विश्वव्यापी दौर--नैतिक
मूल्यो के प्रति व्यक्ति को आस्था--बतों का नैतिक मूल्याइन--जतों का
सामूहिक नैतिक प्रमाव--जीवन की व्यावहारिक पृष्ठ भूमि पर अगुज्ञतों
का विधान--अश्रणुज्ञतों का उद्देश्य वैरहीन समाज की स्थापना है--
रणतो ক भेद्-श्रहिसागुत्रत-- सत्याशुत्रत-- त्रचौरयाशुत्त ब्रह
चर्यागुत्रत--परिअह परिमाणतरत -सप्तशील--श्रात नियमन की
भावना अनर्य दर्ड विरति--भोगोपभोग परिमाण्वरत--सह्लेखना या
वपामि छठ १६७२६९०
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